पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२०७

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१५३ रामचरित मानस । जो भुसु डि-मन-मानस हंसा । समुन अगुन जेहि निगम प्रसंसा । देखहि हम सो रूप भरि लोचन । कृपा करहु प्रनतारति- मोचन ॥३॥ जो कागभुसुण्डजी के मन रूपी मानसरोवर के हंस रूप हैं, जिसकी प्रशंसा सगुणनिर्गुण कह कर वे करते हैं । हे दीनजनों के दुःख दूर करने वाले स्वामिन् ! वह रूप हम माँस भर देखें, ऐसी कृपा कीजिए ॥३॥ दम्पति बचन परम प्रिय लागे। मृदुल बिनीत प्रेम-रस पागे । भगत-बछल प्रभु कृपानिधाना । विस्वास प्रगटे भगवाना ॥४॥ राजा-रानी के वचन अत्यन्त प्रिय लगे, वे कोमल, नम्र और प्रेमरस से पैगे हैं। सब जगत् में टिके हुए, भक्तवत्सल कृपानिधान प्रभु भगवान् प्रत्यक्ष हुए ॥४॥ दो०--नील-सरोरुह ' नील-मनि, नील-नीरधर- स्याम । लाहिँ तनु साभानिरखि, कोटि कोटि सत काम ॥१६॥ नीलकमल, नीलमणि और नीले मेघ के समान श्याम शरीर है, जिसकी शोभा को देख कर सौ सौ करोड़ कामदेव लजा जाते हैं ॥१४६॥ चौ०--सरद-मयङ्क-बदन छबि सीवाँ । चारु-कपाल चिबुक दर ग्रीवाँ । अधर-अरुन रद सुन्दर नासो । बिधुकर निकर बिनिन्दक हासा ॥१॥ शरकोल के चन्द्रमा के समान शोभा का हद मुख है, गाल और ठोढ़ी मनोहर तथा गला शङ्ख के बराबर है । औठ लाल रङ्ग के, दाँत और नाक सुन्दर हैं, हँसी चन्द्रमा की किरण- राशि को नीचा दिखानेवाली है॥१॥ नव अम्बुज अम्बक-छबि नीकी। चितवनि ललित मावती जी की। भृकुटि मनोज-चाप छबि-होरी। तिलक ललाट-पटल दुतिकारी ॥२॥ नवीन कमल के समान नेत्र अच्छी छविवाले हैं, सुन्दर चितवन मन को सुावनेवाली है। भैहि कामदेव के धनुष की शोभा को हरनेवाली हैं, माथे के प्रावरण (तह) पर शोभा बढ़ाने वाला (चमकीला ) तिलक है ॥२॥ कुंडल मकर मुकुट सिर माजा । कुटिल केस जनु मधुप-समाजा ॥ उर श्रीवतस रुचिर बनमाला । पदिक-हार भूषन मनि-जाला ॥३॥ कानों में मकराकृत-कुण्डल और सिर पर मुकुट शोभायमान है, टेढ़े बाल ऐसे मालूम होते हैं मानों भँवरों के झुण्ड है। । अच्युत भगवान के हृदय पर सुन्दर वनमाला और पदिक- हार हैं, (अङ्ग अब मैं ) मणियों से जड़े आभूषण सजे हैं ॥३॥ काले भ्रम का झुण्ड शोभन होता ही है। यह उक्तविषया वस्तूपेक्षा अलंकार है। तुलसी, कुन्द, मन्दार, पारिजात और कमल के फूलों से बनाई हुई माला 'वनमाला! कहखाती