पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२१२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रथम सोपान, बालकाण्ड । १५७ पुरउब मैं अभिलाष तुम्हारा । सत्य सत्य पन सत्यं हमारा ॥ पुनि पुनि अस कहि कृपानिधाना । अन्तरधान भये भगवाना ॥ ३ ॥ मैं आप की अभिलाषा पूरी कसँगा, हमारी प्रतिज्ञा सत्य है। सत्य है। सत्य है । कृपा- निधान भगवान् बार बार ऐसा कह कर अवश्य हो गये ॥३॥ दम्पपि उर धरि भगति कृपाला । तेहि आस्त्रमनि बसे कछु काला। समय पाइ तनु तजि अनयासा । जाइ कीन्ह अमरावति बासी ॥४॥ पति-पत्नी दोनों ने कृपालु भगवान की भक्ति हृदय में रख कर कुछ काल उस श्राश्रम में निवास किया। समय प्राप्त होने पर बिना प्रयास ही शरीर त्याग कर अमरावती पुरी में जाकर बसे॥on दो०-यह इतिहास पुनीत अति, उमहि कहा वृषकेतु । भरद्वाज सुनु अपर पुनि, राम-जनम कर हेतु ॥ १५२ ॥ यह अतिशय पवित्र इतिहास शिवजी ने पार्वतीजी से कहा। यज्ञावल्क्य जी कहते हैं- हे भरद्वाज ! फिर रामचन्द्रजी के जन्म का दूसरा कारण सुनिए ॥ १५२ ॥ चौ०-सुनु मुनि कथा पुनीत पुरानी । जो गिरिजा प्रति सम्भु बखानी॥ बिस्व-विदित एक कैकय देसू । सत्यकेतु तहँ बसइ नरसू ॥१॥ हे मुनि ! इस पुरानी और पवित्र कथा को सुनिए, जिसे शिवजी ने गिरिजां से बखान कर कहा । संसार में प्रसिद्ध एक केकय देश है, वहाँ सत्यकेतु नामक राजा रहते थे॥१॥ केकय देश काश्मीर राज्य के अन्तर्गत है। अब वह कका के नाम से विख्यात है। पहले इस प्रान्त की राजधानी गिरिव्रज या राजगृह थी । सत्यकेतु यहीं के राजा थे। धरम-धुरन्धर नीति-निधीना। तेज प्रताप सील बलवाना॥ तेहि के भये जुगल-सुत बीरा । सब.गुन-धाम महा-रनधीरा ॥२॥ वह धर्म-धुरन्धर, नीति का स्थान, तेजस्वी, प्रतापवान्, शीलवान् और बली था। उसके दो वीर पुत्र हुए; जो सब गुणों के धाम और, रणधीर थे ॥२॥ राज-धनी जो जेठ सुत आही । नाम प्रताप-भानु अस ताही ॥ अपर-सुतहि अरिमर्दन नामा । भुज-बल-अतुल अचल-सङ्गामा ॥३॥ जो जेठा पुत्र राज्य का अधिकारी है, उसको भानुप्रताप ऐसा नाम है। दूसरे पुत्र का अरिमर्दन नाम है, उसकी भुजाओं में अपार पल था और युद्ध में अटल (पीछे हटनेवाला नहीं) था ॥३॥