पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२१४

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इस प्रथम सोपान, बालकाण्ड । दो०-स्वबस बिस्व करि बाहु बल, निज-पुर कीन्ह प्रबेस ॥ अरथ-धरम-कामादि सुख, सेवइ. समय नरेस ॥ १५४ ॥ वाहुबल से संसार को वश में कर के अपने पुर में प्रवेश कियो । अर्थ, धर्म काम और मोक्ष-सुख का सेवन राजा समय समय पर करता था ॥ १५४ ॥ फर-संग्रह, राज्य प्रबन्ध आदि अर्थ-सुख का सेवन है। गुरु-देवता ब्राह्मणों का सत्कार, यज्ञ, दानादि धर्म-सुख का सेवन है। स्त्री-पुत्र, कुटुम्गे और सम्बन्धियों की रुचि का पालन, विविध विनोद काम-सुख का सेवन है । ईश्वर उपासना, तत्व विचार, हरिकीर्चनादि मोक्ष- सुख का सेवन है। चौ०-भूप प्रताप-भानु बल पाई । कामधेनु भइ भूमि सुहाई ॥ सब दुख बरजित प्रजा सुखारी । घरम-सील सुन्दर नर नारी ॥१॥ राजा भानुप्रताप का बल पा कर पृथ्वी कामधेनु के समान सुहावनी हुई। सारी प्रजा दुःख से रहित सुखी रहती है, स्त्री-पुरुष सुन्दर और धर्मात्मा हैं ॥१॥ सचिव धरमरुचि हरि-पद-प्रीती । नृप-हित-हेतु सिखव नित नीती ॥ गुरु सुर सन्त पितर महिदेवा । करइ सदा नृप सब के सेवा धर्मरुवि मन्त्री भगवान के घरों का प्रेमी, राजा की भलाई के लिए नित्य ही सदाचार सिखाता था। गुरु, देवता, सज्जन, पितृ-गण और ब्राह्मण सब की सेवा राजा सदा भूप-धरम जे. बेद बखाने । सकल करइ सादर सुख माने ॥ दिन-प्रति देइ बिबिध बिधि दोना । सुनइ साख बर बेद पुराना ॥३॥ राजाओं के धर्म जोवेद वर्णन करते हैं, वह सम्पूर्ण आदर के साथ सुख मान कर करता है। प्रतिदिन अनेक प्रकार का दान देता है और सुन्दर वेद, शास्त्र, पुराण सुनता है ॥३॥ नाना बापी कूप तड़ागा । सुमन-बाटिका सुन्दर बागा। विप्र-मवन सुर-भवन सुहाये । सब तीरथन्ह विचित्र बनाये ॥४॥ नाना प्रकार की विलक्षण बावलियाँ, कुएँ, तालाब, फुलवारियाँ, सुन्दर बगीचे, ब्राह्मणों के घर और देवतामों के मुहावने मन्दिर सय तीर्थों में बनवाये ॥४॥ दो-जहँ लगि कहे पुरान खुति, एक एक सब जाग । बार सहर सहस्र नप, किये सहित अनुराग ॥१५॥ वेद और पुराणों ने जहाँ तक एक एक यज्ञ कहे हैं, वे सब प्रीति के साथ राजा ने हज़ार हजार बार किए ॥१५॥ करता था ॥२॥