पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२२

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छप गया! छप गया !! उपन्यास-प्रेमियों के लिए खुशखबरी! 'सन्देह” हिन्दी उपन्यास जगत में अनूठी चीज़ ! "गिरीश जी का 'सन्देह' नामक उपन्यास छप गया !! मधुर, मनोहारिणी, हदयस्पर्शिनी, तथा करुणा-पूर्ण प्रणयकथा के अङ्क में भारतीय क्रान्ति-कारियों की साहस-मयी क्रियाशीलता की गाथा को विललित देख कर यदि आप अपने हदय में देशभक्ति का भाव भरना मानव-चरित्र के अध्ययन से उत्पन होने वाले अलौकिक आनन्द का अनुभव करना तथा विधि-विधान की प्रबलता का पता पाकर सांसारिक विषादों से विकल अपने चिस को संतोष देना चाहते हैं तो भूतपूर्व मनोरमा-सम्पादक पं० गिरिजादत्त शुक्ल "गिरीश" बी० ए० के इस नवीन उपन्यास को अवश्य पदिए । 'सन्देह' के पृष्ठों में कही राजा आत्मानन्द साहेब की नीचता-पूर्ण खैरख्वाही को देख कर आप कुढ़ेगे तो कहीं रजनी कुमार के प्रति कासार बाला और किरण कुमारी के प्रेम-बन्द को अवलोकन कर नारी-उदय की विस्मयोत्पादिनी विचित्रताओं का परिचय प्राप्त करेंगे; कहीं कान्तार पाला की सहानुभूति, सारिणी असफलता से आप दुखी होंगे तो कहीं रजनीकुमार द्वारा उसकी हत्या तथा भाल. हत्या से आप विकल हो जायेंगे, कही क्रान्ति-कारियों द्वारा राजा साहेब की गिरफ्तारी आदि का रोचक वृत्तान्त पढ़ कर आप के मन में रजनीकुमार और किरण कुमारी के विवाह की भाशा अङ्कुरित होगी तो कहीं कान्तार बाला और रजतीकुमार की रथियों के पीछे वृदय विदारक स्वर में उनका जयघोष सुनकर आप का हदय बैठ जायगा। कभी कभी हमारी सदिच्छात्रों से ही कितने भयङ्कर परिणाम प्रस्तुत हो जाते हैं, कभी कभी व्यर्थ ही सन्देह करके हम कितना अनिष्ठ कर बैठते है; यदि इस सत्य का जीता-जागता चित्र देखना हो तो 'गिरीश जी के इस उपन्याल को अवश्य पदिए । मूल्य सजिल्द श) साधारण ॥) मिलने का पता- मैनेजर, बेलवेडियर प्रेस, प्रयाग।