पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२३४

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1 प्रथम सोपान,बालकाण्ड । १७६ सोड मय दोन्हि रावनहि आनी । होइहि जातुधान-पति जानी ॥ हरषित भयउ नारि भलि पाई। पुनि दोउ बन्धु बिआहेसि जाई ॥२॥ उसी को लाकर मय दानव ने रावण को यह समझ कर दिया कि रावण राक्षसों का मालिक होगा | अच्छी स्त्री पाकर प्रसन्न हुआ,फिर जा कर दोनों भाइयों का विवाह किया॥२॥ बलि की लड़की ' वृजाला' के साथ कुम्भकर्ण का विवाह और शैलूष नाम गन्धर्वराज की कन्या 'सरमा' के साथ विभीषण का विवाह हुआ। कालखल राक्षस के वंश में उत्पन्न विद्युजि मह राक्षस के साथ रावण ने शुर्पणखा का व्याह कर दिया। समयान्तर में रावण ने दिग्विजय के समय उसे मार डाला था। गिरि-त्रिकूट एक सिन्धु मझारी । विधि-निर्मित दुर्गम अति मारी ॥ सोइ मय दानव बहुरि सँवारा । कनक रचित मनि अत्रन अपारा ॥३॥ समुद्र में एक त्रिकूट पर्वत ब्रह्माजी का पनाया बड़ा भारी और दुर्गम है । उसी को मय दानव ने फिर से सजाया, असंख्यौ सुवर्ण की दीवार के घर जिनमें भौति भाँति के रत्न जड़े एक विधानाने निकूट पर्वत को यों ही दुर्गम बनाया था, दूसरे मय दानव ने.उस पर सुवर्ण के कोट रच कर अतिशय अगम कर दिया 'द्विनीय समुच्चय अलंकार' है। भोगावति जसि अहि-कुल बासा । अमरावति जसि सक निवासा । तिन्ह ते अधिक रम्य अति बढा । जग विख्यात नाम तेहि लङ्का ॥४॥ जैसी नागवंश के रहने की पुरी भोगावती है और इन्द्र के निवास की नगरी अमरावती है, उनमें अधिक रमणीय और बाँको जगत् में प्रसिद्ध उसका नाम लंकापुरी है | दो-खाँई सिन्धु गंभीर अति, चारिहु दिसि फिरि आव । कनक-कोट मनि-खचिन दृढ़, बनि न जाइ बनाव ॥ उसके चारों ओर खाँई के रूप में अत्यन्त गहरा समुद्र ही फिरा हुआ है । सुवर्णका किला, दीवारों में मजवूनी से मणियाँ जड़ो हैं, जिसको बनावट कहा नहीं जा सकती। हरि प्रेरित जेहि कलप जोइ, जातुधान-पति होइ। प्रतापी अतुल-बल, दल समेत बस सोइ ॥ १७ ॥ भगवान् की प्रेरणा से जिस कला में जो राक्षसपति ( रावण ) होता है, वही शरवीर, प्रतापी, अप्रमेय बलशाली सेना सहित यहाँ रहता है ॥१८॥ चौ०-रहे तहाँ निसिचर भट पारे । ते सब सुरम्ह समर सडारे । अब तहँ रहहि सक्र के प्रेरे । रच्छक कोटि जच्छपति केरे ॥१॥ वहाँ पहले बड़े बड़े योद्धा राक्षस रहते थे, उन सब को देवताओं ने लड़ाई में मार डाला! अब वहाँ इन्द्र की प्राशा से कुवेर के एक करोड़ रक्षक रहते हैं ॥१॥ .