पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२३६

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । जौं दिन-प्रति अहार कर साई । बिस्त्र बेगि सब चौपट हाई। समर धीर नहिँ जाइ बखाना । तेहि सम अमित बीर बलवाना ॥३॥ यदि वह प्रतिदिन भोजन करे तो सब संसार शीघ्र ही चौपट हो जाय । युद्ध में ऐसा साहसी कि कहा नहीं जा सकता, उसके समान असंख्यों बलवान योद्धा हैं ॥३॥ बारिदनाद जेठ सुत तासू । भट मह प्रथम लोक जग जासू ॥ जेहि न हाइ रन-सनमुख कोई । सुर-पर नितहि परोवरन होई ॥४॥ उसका बड़ा पुत्र मेघनाद है जिसकी गिनती संसार के शूरवीरों में पहले होती है। जिसके सामने लड़ाई में कोई नहीं पाता, देवलोक में नित्य ही भगदड़ होती है ।। दो०-कुमुख अकम्पन कुलिसरद, धूमकेतु अतिकाय । एक एक जग जीति सक, ऐले सुभट निकाय ॥१८॥ दुर्मुख, अकम्पन, वजूदन्त, धूमकेतु और अतिकाय ऐसे असंख्यो योद्धा है जो अकेले जगत् भर के वीरों को जीत सकते हैं ॥ १० ॥ चौ-काम-रूप जानहिँ सब माया। सपनेहुँ जिन्ह के धरम न दाया । दसमुख बैठ सभा एक बारा । देखि अमित आपन परिवारा ॥१॥ सभी इच्छानुसार रूप धरनेवाले और छल करना जानते हैं, जिनके हृदय में धर्म एवम् दश स्वप्न मै भी नहीं है । एक बार रावणं सभा में बैठा था, अपना अपार परिवार देख कर (प्रसन्न हुआ) १॥ सुत्त-समूह जन परिजन नाती । गनइ को पार निसाचर जाती। सेन बिलोकि सहज अभिनानी । बोला बचन क्रोध-मद-सानो ॥२॥ . असंख्यों पुत्र, माती, कुटुम्बी और नौकर हैं, गक्षस जाति को गिन कर कौन पार पा सकता है। स्वाभाविक अभिमानी रावण सेना देख कर क्रोध और घमण्ड से मिला हुन्ना पवन बोला ॥ २॥ सुनहु सकल रजनीचर जूया । हमरे बैरी विबुध-बरूया ॥ ते सनमुख नहि करहिँ लराई । देखि सबल-रिपु जाहिँ पराई ॥३॥ हे समस्त राक्षस वृन्द ! सुनो, हमारे शत्रु देवता-गण हैं । वे सामने लड़ाई नहीं करते, बलवान् बैरी देख कर भाग जाते हैं॥ ३ ॥ तिन्ह कर मरन एक विधि हाई। कहउँ बुझाइ सुनहु अब साई ॥ द्विज-भोजन मख होम सराधा । सब के जाइ करहु तुम्ह बाधा ॥४॥ उनका मरण एक तरह से होगा, अब वही समझा कर कहता हूँ, सुनो । ब्राह्मण- भोजन, यक्ष, होम और श्राद्ध को तुम सब जा कर बन्द करो अर्थात रोक दो कोई शुभ कर्म है न करने पावे ॥३॥ में