पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२४७

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. रामचरितमानस । चौ-नवमी तिथि मधु माख पुनीता । सुकल पच्छ अभिजित हरि-प्रीता। मध्य दिवस अति सीत न घामा । पावन-काल लोक-विखामा ॥१॥ नौमी तिथि, चैत्र का पवित्र महीना, शुक्ल पक्ष और भगवान् को प्रिय अभिजित मुहूर्ग, मध्वाहकाल, न अधिक शीत न घाम, लोगों के विश्राम का पवित्र समय ॥१॥ सीतल मन्द सुरभि बह बाऊ । हरषित सुर सन्तन्ह मन चाऊ । बन कुसुमित गिरि-गन-मनिआरो । स्रवहिँ सकल सरितामृत-धारा ॥२॥ शीतल, मन्द और सुगन्धित हवा यह रही है, देवता और सन्तों के मन उत्साह से अन. न्दित हैं। वन फूले हैं, पर्वत-समूह मणिवाले हुए हैं और सम्पूर्ण नदियाँ अमृत की धारा बहती हैं ॥२॥ सो अवसर बिरचि जब जाना । चले सकल सुर साजि विमाना ॥ गगन बिमल सङ्कल-सुर-जूथा। गावहिँ गुन गन्धर्व-बरुथा ॥ ३ ॥ जब ब्रह्माजी ने जाना कि वह समय भा गया, तब सम्पूर्ण देवता विमान सज कर चले। निर्मल श्राफाश विवुध वृन्द से भर गया, झुण्ड के मुण्ड गन्धर्व गुण गान करते हैं ॥३॥ बरषहिँ सुमन सुअञ्जलि साजी । गहगहि गगन दुन्दुभी बाजी ॥ अस्तुति करहिं नांग-मुनि-देवा । बहु बिधि लावहिँ निज निज सेवा ॥४॥ सुन्दर अजली भर भर कर फूल बरसाते हैं और आकाश में धूम के साथ नगाड़े बजते हैं। देवता, मुनि और नाग स्तुति करते हैं, वहुत तरह से अपनी अपनी सेवा लगाते हैं ॥४॥ प्रेमी फूल बरसा फर, नाचनेवाले नाच कर, गानेवाले गा कर और सिद्धादि स्तुति कर के सेवा प्रकट कर रहे हैं। दो--सुर-समूह बिनती करि, पहुँचे निज निज धाम । जगनिवास प्रभु प्रगटे, अखिल-लोक-बिस्राम ॥ ११ ॥ सब देवता विनती करके अपने अपने लोक में पहुंचे। सम्पूर्ण लोकों के मानन्द देनेवाले जगनिवास प्रभु रामचन्द्रजी प्रकट हुए ॥२१॥ 'प्रकटे' शन्द में ईश्वरत्व प्रतिपादन की लक्षणामूलक गूढ़ व्यङ्ग है कि भगवान जन्मे नहीं, स्वता प्रकट हुए। चवपैया-छन्द । कृपाला, दीनदयाला, कासल्या-हितकारी। हरषित महँतारी, मुनि-मन-हारी, अदभुत रूप बिचारी । भये प्रगट