पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२४९

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> रामचरित मानस सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना, हाइ बालक सुर-भूपा ।। यह चरित जे गावहि, हरि पद पार्वा, ते न परहि भव-कूपा ॥६ माता की वह बुद्धि यदल गई फिर वे चोली-हे तात ! इस रूप को त्याग दीजिए। अत्यन्त प्रिय को हद बाललीला कीजिए, यह सुख बड़ा ही अनुपम है। देवताओं के राजा सुजान प्रभु माता के वचन सुन कर बालक होकर रोने लगे । जो इस चरित्र को गाते हैं वे संसार-कूप में नहीं पड़ते, परम-पद पाते हैं ॥६॥ 'ठाना' शब्द से लक्ष्यक्रम विवक्षितवाच्य ध्वनि है। जिसमें राजमहल और नगर निवालियों को बालकात्पति की एक साथ ही सूचना जाय। दो०-बिन-धेनु-सुर-सन्त हित, लीन्ह मनुज-अवतोर । निज-इच्छा निर्मित-तनु, माया-गुन-गो पार ॥ १२ ॥ ब्राह्मण, गैया, देवता और सज्जनों के हित मनुष्य-अवतार लिया । जो परमात्मा माया, गुण तथा इन्द्रियों से परे हैं उन्होंने अपनी इच्छा से शरीर निर्माण किया है । १४२ ॥ चौ०-सुनि सिसु रुदन परम प्रिय बानी । सम्भ्रम चलि ओई सब रानी। हरषित जहँ तहँ धाई दासी । आनँद मगन सकल पुरयासी ॥१॥ पालक के रुदन का अतिशय प्रिय शब्द सुन कर सब रानियाँ तुरस्त (प्रसव भवन में) चल कर आई । दासियाँ जहाँ तहाँ से प्रसन्न होकर दौड़ी और सम्पूर्ण नगर निवासी आनन्द में मन्न हो गये ॥१॥ बालक का रोना सुनते ही सारे महल की रानियाँ, दासियों और नगर निवासी सब साथ ही आनन्द में मग्न हो गये 'अक्रमातिशयोक्ति अलंकार' है। दसरथ पुत्र-जन्म सुनि काना। मानहुँ ब्रह्मानन्द समाना । परम-प्रेम-मन पुलक-सरीरा । चाहत उठन करत मति धीरा ॥२॥ दशरथजी पुत्र-जन्म कान से सुन कर ऐसे प्रसन्न हुए, मानों वे ब्रह्म के सुन में समा गये है।। मन में बड़ा प्रेम हुआ, शरीर पुलकित हो गया, उठना चाहते हैं (पर उठ नहीं सकते, इसलिए ) बुद्धि को सावधान करते हैं ॥२॥ जा कर नाम सुनत सुभ होई । मारे गृह आवा प्रभु साई। परमानन्द-पूरि-मन राजा । कहा बोलाइ बजोवहु बाजा ॥३॥ जिनका नाम सुनने से कल्याण होता है, वे ही प्रभु मेरे घर आये हैं। परम आनन्द से राजा का मन भर गया, बाजावालों को बुलवा कर बाजा बजाने के लिए कहा ॥३॥ गुरु बसिष्ट कहें गयउ हँकारा । आये द्विजन्ह सहित नृप-द्वारा । अनुपम बालक देखेन्हि जाई । रूप-रासि गुन कहि न सिराई 120 . गुरु वशिष्ठजी को बुलौना गया, वे नाह्मणों के सहित राजद्वार पर आये ।जा कर अनुपम खालक को देखा, जो वृद्धि की राशि हैं और जिनका गुण कहने से समाप्त नहीं हो सकता ॥४॥