पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२५२

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१९७ प्रथम सोपान, बालकाण्ड । दो०-मास दिवस कर दिवस भा, मरम न जानइ कोई। रथ समेत रवि थाकेउ, निसा कवनि विधि होई ॥१९॥ महीने दिन का एक दिन हुआ, पर इसका भेद कोई नहीं जानता। रथ के सहित सूर्य भगवान ठहर गये फिर रात किस प्रकार हो? ॥१५॥ चौ०-यह रहस्य काहू नहिं जाना । दिन-मनि चले करत गुन गाना ॥ देखि महोत्सव सुर मुनि नागा। चले भवन बरनत निज भागा ॥१॥ इस गुप्तभेद को किसी ने नहीं जाना, सूर्यदेव गुण गान करते हुए चले । यह जन्ममहो. त्सव देख कर देवता, मुनि और नाग अपने भाग्य की बड़ाई करते घर को घले ॥१॥ औरउ एक कहउँ निज चोरी । सुनु गिरिजा अति दुढ मति तारी॥ काकभुसुंडि सङ्ग हम दोऊ । मनुज-रूप जानइ नहिँ कोज ॥२॥ शिवजी कहते हैं-हे गिरिजा ! सुनो, तुम्हारी बुद्धि बड़ी पक्की है इसलिए एक और भी मैं अपनी चोरी कहता हूँ । हम और कागभुशुण्ड दोनों साथ ही मनुष्य रूप में थे, जिसको कोई नहीं जानता था ॥२॥ परमानन्द प्रेम-सुख फूले । बीथिन्ह फिरहिँ मगन मन भूले । यह सुभ चरित जान पै साई। कृपा राम के जा पर होई ॥३॥ प्रेम सुख से परम आनन्द में प्रफुल्लित मन में मग्न गलियों में फिरते थे। पर यह शुभ चरित्र वही जान सकता है, जिस पर रामचन्द्रजी की कृपा होती है ॥३॥ तेहि अवसर जो जेहि विधि ओवा। दीन्ह भूप जो जेहि मन भावा । गज रथ तुरग हेम गो हीरा। दीन्हे नृप नाना विधि चीरा ॥४॥ उस समय जो जिस प्रकार श्राया, जिसके मन में जो अच्छा लगा राजा ने वही दिया। हाथी, रथ, घोड़े, सुवर्ण, गैया, हीरा और नाना भाँति के वस्त्र राजा ने दिये ॥४॥ दो०-मन सन्तोष सबन्हि के, जहँ तह देहिँ असीस । सकल तनय चिरजीवह, तुलसिदास के ईस ॥१६॥ सभी के मन सन्तुष्ट हुए जहाँ तहाँ आशीर्वाद देते हैं कि तुलसीदास के स्वामी सब पुत्र चिरंजीवी है॥१६॥ चौ०-छुक दिवस बीते एहि भाँती । जात न जानिय दिन अरु राता। नाम-करन कर अवसर जानी । भूप बोलि पठये मुनि-ज्ञानी ॥१॥ । ! इसी तरह कुछ दिन बीत गये, दिन और रात जाते मोलुप नहुधा । नाम रखने का समय जान कर राजा ने ज्ञाना-मुनि (वशिष्ठजी ) को बुलवा भेजा ॥१॥ नामकरण-हिन्दुओं के सोलह संस्कायें में से एक मिसमै बालक का नाम रक्खा जाता है। .