पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२५५

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रामचरित मानसं। póc रैख कुलिस ध्वज अङ्कुस साहै । नूपुर धुनि सुनि मुनि मन मोहै । कटि किङिनी उदर त्रय रेखा । नाभि गंभीर जान जेहि देखा ॥२॥ चरण-सल में वज, ध्वजा और अङ्कुशादि की रेखाएँ शोभित हैं, घुघुकत्रो की ध्वनि सुन कर मुनियों के मन मोहित हो जाते हैं । कमर में करधनी, पेट में तीन लकीर (बिवली) और गहरी नाभि को जिसने देखा हो वही जान सकता है ॥२॥ भुज बिसाल भूषन जुत भूरी । हिय हरि-नख अति सोभा करी ॥ उर मनि-हार-पदिक की सामा। विप्र-चरन देखत मन लोभा ॥३॥ बहुत-से आभूपों से युक्त विशाल भुजाएँ हैं और हृदय पर व्याघ्र के नन्नों की अतिशय सुहावनी शोभा है। वक्षस्थल में मणियों के हार, रत्नों की छग्नि और ब्राह्मण के चरण-चिह देखते ही मन लुब्ध हो जाता है ॥३॥ कम्यु कंठ अति चिबुझ सुहोई । आनन अमित मदन-छबि छाई ॥ दुइ दुइ दसन अधर अरुनारे । नासा तिलक को बरनइ पारे ॥४॥ शङ्ख के समान कण्ठ, डाढ़ी बहुत ही सुन्दर और मुख-मण्डल पर असंगयों कामदेव की छवि छाई है। दो दो दलियाँ, ललाई लिए ओठ, नासिका और तिलका का वर्णन कर कौन पार पा सकता है? सुन्दर स्रवन सुचारु कपोला । अति प्रिय मधुर तातरे बोला । चिकन कच कुञ्चित ग आरे । बहु प्रकार रचि मातु सँवारे ॥५॥ सुन्दर कान और सुहावने मनोहर गाल हैं । तोतरी बोली मधुर अत्यन्त प्यारी है। बिना मुण्डन जन्म समय से रक्ने हुए चीकने घूघरवाले बालों को माताओं ने बहुत तरह से सज (गूथ) कर बनाये हैं ! पीत अँगुलिया तनु पहिराई । जानु-पानि विचरनि माहि भाई । रूप सकहिं नहिँ कहि युति सेखा । सो जानहिँ सपनेहुँ जिन्ह देखा ॥६॥ पीले रङ्ग को अँगरखी शरीर पर पहनाई है, घुटने और हाथों के बल चलना मुझे बहुत अच्छा लगता है । वेद और शेप शोमा नहीं कह सकते, उसको वे ही जानते हैं जिन्होंने स्वप्न में भी देखा है ॥६॥ दो-सुख सन्दोह माह पर, ज्ञान-गिरा-गोतीत। दम्पति परम प्रेम-प्रस, कर सिसु चरित पुनीत ॥ १६ ॥ सुन के समुह, अज्ञान से परे, ज्ञान, वाणी और इन्द्रिय से बाहर परमात्मा राजारानी के अत्यन्त प्रेम के अधीन हो कर पवित्र वाललीला करते हैं ॥१॥ इस वर्णन में माता की वत्सलता स्थायी भाव है । रामचन्द्रजी पालम्बन विभाव हैं। ॥ - .