पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२५६

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। प्रथम सोपान, बालकाण्डं । २०१ उनकी सुन्दरता, बाललीला उद्दीपन विभाव है। गोद में लेकर दुलारना, पालने में मुलाना आदि अनुभाव हैं । हर्षादि समचारी भावों द्वारा पुष्ट हो कर वसल रस' हुआ चौ०-एहि बिधिराम जगत-पितु-माता । कोसलपुरबासिन्ह सुख-दाता॥ जिन्ह रघुनाथ चरन रनि मानी। तिन्ह कोयहगति प्रगट भवानी॥१॥ इस प्रकार जगत् के माता-पितारामचन्द्र जी अयोध्यापुर वासियों को सुख देते हैं । शिवजी कहते हैं-हे भवानी ! जिन्होंने रघुनाथजी के चरणों में प्रीति मानी है, उनकी यह दशा प्रत्यक्ष है अर्थात् अवधपुर निवासियों की तरह वर्तमान काल में भी रामचन्द्रजी उन्हें प्रानन्द देते हैं ॥१॥ रघुपत्ति-बिमुख जतन कर कोरो । कवन लकई भव-इन्धन छोरी ॥ जीव चराचर बस के राखे । सेो माया प्रभु साँ भय भाखे ॥२॥ रघुनाथजी से विमुखी प्राणी कोरियों यत्न करे, पर उसे संसारी-बन्धन से कौन छोड़ सकता है ? (कोई नहीं)। जिस माया ने जड-चेतन जीवमात्र को अपने वश में कर रखा है, वह प्रभु रामचन्द्रजी ले डर कर बोलती है ॥२॥ भृकुटि-बिलास नचावइ ताही । अस प्रभु छाडि भजिय कहु काही । मन क्रम बचन छाड़ि चतुराई । भजत कृपा करिहहि रघुगई ॥३॥ भौंह के इशारे से उसको नचाते हैं, ऐसे स्वामी को छोड़ कर कहिए किसका भजन करना चाहिए १ मन, कर्म और वचन से चालाकी छोड़ कर भजन करते ही रघुनाथजी कृपा एहि बिधि सिसु-बिनोद प्रभु कीन्हा । सकल नगर-बासिन्ह सुख दीन्हा । लेइ उछङ्ग कबहुँक हलरावै । कबहुँ पालने घालि लावै ॥४॥ इस तरह प्रभु रामचन्द्रजी बाललीला कर के सम्पूर्ण नगर-निवासियों को सुन दिया। कभी गोद में ले कर हिलाती हैं, कभी पालने में पौढ़ा कर सुजाती हैं ॥४॥ दो०-प्रेम मगन कौसल्या, निसि दिन जात न जान । सुत-सनेह-बस माता, बाल-चरित कर गान ॥ २०० ॥ माता कौशल्याजी प्रेम में मग्न रात दिन बीतते नहीं जानती हैं । पुत्र के स्नेहवश वाल. लीला को गान करती हैं ॥ २० ॥ माता का पुत्र विषयक स्नेह रतिभाव है। रामचन्द्रजी मालम्बन विभाव हैं। उनको मृदु मुसुकान उहोपन विभाव है। माता का गोद में लेकर हलराना, चूमना, पालने में झलाना आदि अनुभाव हैं । हर्षादि सञ्चारीभावों से विस्तृत हो व्यक्त हुआ है। चौ०-एक बार जननी अन्हवाये । करि सिंगार पलना पौढ़ाये । निजकुल इष्टदेव भगवाना । पूजा हेतु कीन्ह असनाना ॥ १ ॥ एक बार माता ने रामचन्द्रजी को स्नान कराया और ऋहार कर के पालने में सुता दिया। अपने कुल के इष्टदेव भगवान की पूजा करने के लिए उन्होंने स्नान किया ॥ १॥ करेंगे॥३॥ 1 २६