पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२६

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गोस्वामी तुलसीदासजी का जीवन-चरित्र जिस इस प्रकार भारतवर्ष के पूर्वकालीन श्राचार्य वाल्मीकि, अगस्त्य, कपिल, गौसम, वशिष्ठ और व्यासादि महर्षियों एवम् कालिदास, भव भूति, दण्डी, बाण, माघ श्रादि महाकवियों ने अपने सुललित काव्यों द्वारा राजनीति, समाज-नीति, धर्म-नीति और वेदान्त-विज्ञान के विलक्षण चमत्कारों को प्रत्यक्ष कर जन-समाज का अनन्त उपकार किया है, उसी प्रकार मध्यवर्ती काल में महात्मा सूरदास, तुलसीदास और गुरु नानकशाह श्रादि भगवद्भको ने अपनी रसमयी ओजस्वी कविता द्वारा मातृभूमि की अच्छी सेवा की है। उनके प्रसाद-पूर्ण कार्यों से असंख्यों हृदय पवित्र हो चुके और होते जा रहे हैं। उन महापुरुषों में से आज हम महर्षि-शिरोमणि कवि सन्नाट गोस्वामी तुलसीदासजी के जीवन चरित्र को लिख कर अपनी लेखनी पवित्र करना चाहते हैं महात्माओं के जीवन चरित्रों में प्रायः कुछ न कुछ आश्चर्यजनक घटनाएँ अवश्य ही पाई जाती हैं और चरित्र लेखक लोग प्रचलित कथाओं तथा सुनी सुनाई किम्बिदन्तियों को भी अपने लेखों में स्थान दे देते हैं। यद्यपि आश्चर्य: जनक और अनैसर्गिक घटनाएँ उनकी महिमा को नहीं बढ़ाती, तो भी उनका उल्लेख करना लेखक- गण अनुचित नहीं मानते। ऐसी दशा में अधिकांश अनुमान ही से काम लिया जाता है। यही वात गोसाईजी के सम्बन्ध में भी समझिये। इनकी पूर्ण स्वतन्त्र जीवनी अबतक किसी को प्राप्त नहीं हो सकी; कतिपय धुरन्धर हिन्दी लेखकों ने कुछ लिखी लिखाई और सुनी सुनाई वातों के आधार पर जिस तरई उसे लिखने का प्रयत्न किया है तदनुसार हम भी उन घटनाओं का संग्रह करके इसके सम्पादन का प्रयत्न करेंगे। भिन्न भिन्न लेखकों के कथनानुसार गोसाईजी के जन्मकाल, जन्मस्थान, कुल और शिक्षा आदि किसी बात का ठीक निश्चय नहीं होता। कोई कुछ कहता है तो कोई कुछ। सुना जाता है पसका भाम निवासी बेणीमाधव कवि ने काव्य में गोस्वामीजी की जीवनी विस्तार पूर्वक लिया था। किन्तु अब वह मिलती नहीं | नानाजी ने अपने भक्तमाल में गोस्वामीजी की स्तुति की है। मामा जी के शिष्य प्रियादासजी ने भक्तमाल को टीका में कुछ विस्तार करके थोड़े चरित्रों का परिचय दिया है। गोस्वामीजी के शिष्य महात्मारधुबरदासजी ने दोहा चौपाइयों में तुलसीचरित' नाम का एक बहुत बड़ा मन्ध लिखा। उसमें उन्होंने गोसाँईजी के विशेष विशेष चरितों का खूब विस्तार से वर्णन किया