पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२६८

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........ प्रथम सोपान, बालकाण्ड । २११ तह पुनि कछुरू दिवस रघुराया। रहे कोन्हि विप्रन्ह पर दाया ॥ भगति हेतु बहु कथा पुराना । कहे विम जाशि प्रभु जाना ॥४॥ फिर कुछ दिन वहाँ रघुनाथ जी रहे और बालों पर कसा की । यद्यपि प्रभु रामचन्द्र जी जानते हैं, तो भी पुराणों की बहुत सी कथा ब्राह्मण कहते हैं और भकि के कारण (ब्राह्मणों की 'प्रसन्नता के लिये) सुनते हैं | तब मुनि सादर कहा बुझाई । चरित एक प्रभु देखिय जाई ॥ धनुष-जज्ञ सुनि रघुकुल नाथा । हरषि चले मुनिबर के साथा ॥५॥ तव मुनि ने आदर से समझा कर कहा-हे प्रभो ! चल कर एक चरित्र देखिये । धनुषा यह सुनकर रघुकुल के स्वामी प्रसन्न हो कर सुनिवर के साथ चले ॥५॥ आस्त्रम एक दीख मग माहीं । खग मृग जीव जन्तु तहँ नाही। पूछा मुनिहि सिला प्रभु देखी । सकल कथा रिषि कही त्रिसेखो ॥६॥ रास्ते में एक पाश्रम देखा, वहाँ पशु-पक्षी जीव-जन्तु कोई नहीं है। प्रभु रामचन्द्रजी ने पत्थर की चट्टान पड़ी देख कर मुनि से पूछा, तब ऋषि ने उसकी सम्पूर्ण कथा विस्तार से कही ॥६॥ विश्वामित्रजी ने कहा-हे रामचन्द्र ! सुनिए, ब्रह्मा ने एक अत्यन्त रूपवतो अहल्श नाम की कन्या उत्पन की और उसका विवाह गौतम मुनि से कर दिया। इन्द्र ने छल से एक बार गौतम का रूप बना कर अहल्या से समागम किया। उसी समय ऋषि आ गये। इन्द्र को आनलेने पर भी ऋषि के भय से अहल्या ने उसे छिराने का यत्न किया। इस कपट की जान कर मुनि क्रोधित हुए और इन्द्र को शाप दिया कि तेरे शरीर में एक हजार योनियाँ हो। जड़ता करने से अहल्या को पत्थर होजाने का शाप दिया। आप अन्यत्र तपस्या करने चले गये। इन्द्र की प्रार्थना पर अनुग्रह करके कहारघुकुल में जब ईश्वर जन्म लेकर इधर नायगे उनके चरण स्पर्श से शिला अपनी गति को प्राप्त होगी और उन्हें दूलह का जनकपुर में देख कर तेरी योनियों सब ने होजावेंगी। यह निर्जन स्थान में पड़ी हुई चट्टान वही अइल्या है। दो०-गौतम-नारि साप बस, उपल देह धरि धीर । चरन-कमलरज चाहति, कृपा करहु रघुधीर ।। २१० ॥ हे धोर रघुगेर ! गौतम मुनि की पत्नी शाप से पत्थर की देह धारण किये हुए आप के चरण-कमलों की धूल चाहती है, कृपा कीजिए ॥२२० । त्रिभङ्गी-छन्द। परसतं पद-पावन, सोक नसावन, प्रगट मई तप,-पुज सहो । देखत रघुनायक, जन-सुख-दायक, सनमुख होइ कर, जारि रहो।