पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

है। इस ग्रन्थ के चार खंड हैं और एक लाख तेतीस हजार नौ सौ बासठ छन्दों में पूरा होना कहा जाता है। तुलसीचरित के सम्बन्ध में बाबू शिवनन्दनसहाय ने अपना मत इस प्रकार व्यक कया है- . "हमें ज्ञात हुआ है कि केसरिया-चम्पारन निवासी बाबू इन्द्रदेव नारायण को गोसाँईजी के किसी चेले की एक लाख दोहे चौपाइयों में लिखी हुई गोसाँईजी की जीवनी प्राप्त हुई है। सुनते हैं गोसाई . जी ने पहले उसका प्रचार न होने का शाप दिया था, किन्तु लोगों के अनुनय विनय से शाप-मोचन का समय सम्बत् १९६७ निर्धारित कर दिया । तब तक उसकी रक्षा का भार उसी प्रेत को सौंपा गया, जिसने गोसाईजी को श्रीहनूमानजी से मिलने का उपाय बताकर श्रीरामचन्द्रजी के दर्शन की राह दिखाई थी। यह पुस्तक भूटान में किसी ब्राह्मण के घर पड़ी रही । एक मुंशीजी उस (ग्रामण) के बालकों के शिक्षक थे। बालकों से उस पुस्तक का पता पाकर उन्होंने उसकी पूरी नकल कर डाली। इस गुरुतर अपराध से क्रोधित हो वह ब्राह्मण उनके वध के निमित्त उद्यत हुआ, तो मुंशीजी वहाँ चम्पत हो गये । यही पुस्तक किसी प्रकार अलवर पहुंची और फिर पूर्वोक्त बाबू साहय के हाथ लगी। विद्वद्वर मिश्र-वन्धुओं के लिने 'नवरत्न की समालोचना के समय बाबू इन्द्रदेवनारायण ने 'मर्यादा' में कदाचित् इसी अन्य के दो एक पृष्ठ प्रकाशित किये थे। अभीतक यह पूर्ण जीवनी अथवा इसका कोई विशेष अंश सर्वसाधारण के सन्मुख उपस्थित नहीं किया गया है, जिससे लोगों को इस पर विचार करने का अवसर मिलता।" काशीनागरीप्रचारिणी सभा के मंत्री ने रघुबरदास के प्रत्येक सिद्धान्त जो प्रकट हुए हैं अपनी जीवनी में उनका संग्रह किया है और प्रकाशिन दोहा चौपाइयों को भी यथातथ्य उद्धृत किया है। डापटर प्रिनसन ने बड़े परिश्रम और खोज के साथ गोस्वामीजी के जीवनचरित्र सम्म न्धी अनेक किम्बदन्तियों का संग्रह किया है और एक चित्र भी प्रकाशित किया है जो वृद्धावस्था का कल्पित जान पड़ता है। पं० रणछोड़लाल व्यास ने 'तुलसी-जीवनी लिखा है, उसमें गोस्वामीजी का एक चित्र दिया है । उस चित्र को ब्यासजी ने बादशाह जहाँगीर का बनवाया बतलाया है। यह चित्र लगभग ७०-७५ वर्ष की अवस्था का और सद्यारोगमुक्त हुए अवसर का लिया हुमा मालूम होता है । बादशाह अकबर के बनाये चित्र ले यह मिलता है, अन्तर केवल अवस्था का है। हिन्दी-नवरत्न में मिश्रबन्धुओं ने गोस्वामीजी का जीवनचरित्र लिख कर उनके काव्यों की समालोचना की है और उसके साथ तुलसीदासजी का एक कल्पित चित्र भी प्रकाशित किया है। अवधांसी लाला सीताराम बी० ए० ने राजापुर में गोस्वामीजी के हाथ की लिखी अयो. ध्याकाण्ड बी प्रति जो भवतक वर्तमान है, उसका प्रतिलिपि छपाई है । उन्हों ने उसमें गोसाई जी का एक चित्र दिया है, कहा जाता है कि उसको बादशाह अकबर ने अपने चित्रकारों से बनवाया था। इस चित्र के देखने पैंतीस छत्तीस वर्ष की अवस्था का लिया हुआ अनुमान होता है और उस 'समयगोस्वामीजी जटाजूटधारी तपश्चर्या में अनुरक्त थे। पिछले चित्रों में शिखा के अतिरिक्त जटा, मादी भार मूछ के बालों का पता नहीं है जिससे अनुमान होता है कि तपस्या पूर्ण हो जाने के अनन्तर वे भद्र होते थे।