पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२७०

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । २१३ जेहि पद सुरसरिता, परम पुनीता, प्रगट भई सिव, सीस धरी सोई पद-पङ्कज, जेहि पूजत अज, मस सिर धरेउ कृपाल हरी । एहि भाँति सिधारी, गौतम नारी, बार बार हरि, चरन परी। जो अति मन भावा, सो बर पावा, गह पतिलोक अनन्द भरी ॥५॥ जिन चरणों से निकली हुई अत्यन्त पवित्र गङ्गाजी को शिवजी ने सिर पर धारण किया है, जिन (चरणों) की पूजा ब्रह्माजी करते हैं, उन्हीं पद-कमलों को कृपालु भगवान् ने 'मेरे मस्तक पर रक्खा । इस तरह बार बार रामचन्द्रजी के चरणों में गिर कर गौतम मुनि की स्त्री चती जो अत्यन्त मन को अच्छा लगा वह वर पाया और श्रानन्द से भरी पतिलोक को गई ॥५॥ जो अत्यन्त मन भाया वही वर पाया और पतिलोक को गई । सब चित्तचाही पात बिना किसी यत्न के होना 'प्रथम प्रहर्पण अलङ्कार' है। दो-अस प्रभु दीनबन्धु हरि, कारन रहित दयाल । तुलसिदास सठ ताहि मजु, छाडि कपट जज्जाल ॥२११॥ प्रभु रामचन्द्रजी इस प्रकार दुखियों के सहायक-बन्धु बिना कारण ही या करनेवाले हैं, अरे मूर्ख तुलसीदास ! कपट का प्रपञ्च छोड़ कर तू उनका भजन कर ॥ २११ ॥ यहाँ कविजी अपने को शठ कहते हैं 'लघुता ललित सुवारि न खोरी' के अनुसार यह दैन्यभाव है। चौ०-चले राम लछिमन मुनि सङ्गा । गये जहाँ जग-पावनि गङ्गा ॥ गाधि-सूनु सब कथा सुनाई । जेहि प्रकार सुरसरि महि आई ॥१॥ रामचन्द्र और लक्ष्मणजी मुनि के साथ चले, जगत् को पवित्र करनेवाली जहाँ गहाजी हैं वहाँ गये । गाधि-तनय (विश्वामिन ) ने वे सब कथाए सुनाई जिस प्रकार गङ्गाजी पृथ्वी पर आई हैं॥१॥ उन्होंने कहा-हें रामचन्द्र ! सुनिए, आपके पूर्वज राजा सगर के दो रानियाँ थी। पहली रानी से एक पुत्र और दूसरी से सात हजार पुत्र हुए। एक बार अश्वमेध के लिए राजा ने धोडा छोड़ा। उस घोड़े को छल से चुरा कर इन्द्र ने कपिल मुनि के आश्रम में ले जा कर बाँध दिया। राजा के साठी हज़ार पुत्र घोड़ा लोजने को निकले, उसे मुनि के आश्रम में बँधा देख क्रुद्ध हो ऋषि को दुर्वचन कहे तब कपिल भगवान् ने शाप दे कर सब को भस्म कर दिया। राजा ने अपने दुसरे पुत्र असमजस के बेटे अंशुमान को खोज के लिए भेजा। पितरों की दशा देख कर वह दुखी हुला। गरुड़जो ने आदेश किया कि तप कर के गङ्गा को धरती पर लामो तो सब तर जाँयगे । तदनुसार अंशुमान ने तथा उनके पुत्र दिलीप ने तप किया, पर फल कुछ न हुधा। अन्त में दिलीप के पुत्र भगीरथ के उद्योग से गङ्गाजी धरती पर आई जिससे वे साठी हजार शाप से मुक्त हो परमधाम को गये।