पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२७२

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. प्रथम सोपान, बालकाण्ड । २१५ धनिक-बनिक बर धनद समाना। बैठे सकल बस्तु लेइ नाना । चौहट सुन्दर गली सुहाई । सन्तत रहहिं सुगन्ध सिंचाई ॥२॥ कुवेर के समान अच्छे धनवान बनिएँ नाना प्रकार की सब वस्तु लेकर बैठे हैं। सुन्दर चौक और सुशाग्नी गलियाँ सदा सुगन्ध से सिंचाई रहती हैं ॥२॥ मङ्गल-मय मन्दिर . सब केरे । चित्रित जनु रतिनाथ चितेरे ॥ पुर नर-नारि सुमग सुचि सन्तो। घरमसील ज्ञानी गुनवन्ता ॥३॥ सब के घर मङ्गल के रूप हैं, वे ऐसे सुहावने मालूम होते हैं मान कामदेव रूपी चित्रकार 'ने उनमें तसबीरें बनाई हो । नगर के स्त्री पुरुष सुन्दर, स्वच्छ, सज्जन, धर्मात्मा, ज्ञानी और गुणवान हैं ॥३॥ 'तसबीर तो मुसौत्रगे ने बनाई है, कामदेव ने नहीं, पर कविजी इस अहेतु को हेतु ठहरा कर उत्प्रेक्षा करते हैं कि चित्र पेले मनोहर हैं मानों कामदेव ने चित्रकारी की हो. अलिक विषया हेतूत्प्रेक्षा अलंकार' है। अति अनूप जहँ जनक-निवासू । विथ कहिँ शिबुध बिजोकि बिलासू॥ होत चकित चित कोट बिलोकी । सकल मुत्रन सोमो जनु रोकी ॥४॥ जहाँ जनकजी रहते हैं वह स्थान बहुत ही अपूर्व है, उस विहार (ऐश्वर्या को देख कर देवता मोहित हो जाते हैं। राजमहल को देख कर वित विस्मित होता है, वह ऐसा मालूम होता है मानों समूर्ण लाकों की शोभा को उसने अपने में रोक रक्खी हो ॥४॥ दो-धवल-धाम मनि-पुरट-पट, सुघटित नाना भाँति । सिय-निवास सुन्दर-सदन, सोमा किमि कहि जाति ॥२३॥ स्वच्छ मन्दिर में नाना प्रकार के रनों से जड़ी और सुवर्ण की बनी हुई सुहावनी खिाड़ें लगी हैं। जो सीताजी के रहने का सुन्दर घर है, उसकी शोमा कैसे कही जा सकती है ? (नहीं वर्णन की जा सकती) ॥२१॥ चो०-सुभग द्वार सब कुलिस कपाठा। भूप भीर नट मागध भाटा । बनी बिसाल बाजि-गज-साला। हयगय-रथ संकुर संघ काला ॥१॥ सुन्दर द्वार्ग में वन की सम किंवाड़े लगी हैं, राजा, नवनियाँ, मागध और बन्दी- जनों की भीड़ हो रही है। बड़ी बड़ी घुड़शाले और हाथीखाने पने हैं, वे सब समय घोड़ा, हाथी तथा रथों से भरे रहते हैं ॥१॥ सूर सचिव सेनप . बहुतेरे । नप गृह सरिस सदन सत्र केरे। : पुर बाहिर सर सरित समीपा । उतरे जहँ तहँ पिपुर महीपा ॥२॥. बहुत से शुरवार, मन्त्री और सेनापति सब के घर राजा के महल के समान ही हैं। नगर के बाहर तालाव और नदी के समीप जहाँ तहाँ असंख्यों राजा उतरे हैं ॥३॥