पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२७८

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प्रथम सोपान, बालकाण्डं । २२१ कहहि परसपर बचन सप्रीती । सखि इन्ह कोटि काम छबि जीती॥ सुर नर असुर नाग मुनि माहौँ । सोमा असि कहुँ सुनियति नाहीं ॥३॥ वे आपस में प्रेम से बातें कहती है-हे सखी ! इन्होंने करोड़ों कामदेवों की शोसा को जीत लिया है । देवता, मनुष्य, दैत्य, नाग और मुनियों में ऐसी सुन्दरता कहीं सुनने में नहीं आई ॥३॥ बिष्नु चारि भुज बिधि मुख चारी। बिकट-बेष मुख-पञ्च पुरारी॥ अपर देव अस कोउ न आही। यह छबि सखी पटतरिय जाही ॥४॥ विष्णु के चार भुजाएँ हैं, ब्रह्मा के चार मुख हैं, शिवजी की सूरत डरावनी है और पाँच मुँहवाले हैं। और देवता ऐसे कोई नहीं है जिससे-हे सखी ! इनकी छवि की बराबरी की जाय ॥४॥ दो०--बय किसोर सुखमा सदन, स्याम गौर सुख-धाम । अङ्ग अङ्ग पर वारियहि, कोटि कोटि सत काम ॥२२०॥ किशोर अवस्था, सुन्दरता के घर, श्यामल और गौर वर्ण. सुख के स्थान हैं। इनके एक एक अङ्गों पर सौ सौ करोड़ कामदेव न्यौछावर करने योग्य हैं ॥ २२० ॥ चौ०--कहहु सखी अस को तनुधारी। जो न मोह यह रूप निहारी ॥ कोउ सप्रेम बोली मृदु बानी । जो मैं सुना सा सुनहु सयानी ॥१॥ हे सखी! कहो तो ऐसा कौन शरीरधारी है जो यह रूप देख कर मोहित न होगा? कोई प्रेम से कोमल वाणी बोली-हे सयानी! जो मैं ने सुना है वह सुनौ ॥१॥ ये दोऊ दसरथ के ढाटा। बाल-मरालन्ह के कल जोटा । मुनि-कैासिक-मख के रखवारे । जिन्ह रन-अजिर निसाचर मारे ॥२॥ ये दोनों बालाजहों को तरह सुन्दर जोड़ी, महाराज दशरथजी के पुत्र हैं। विश्वा- मित्र मुनि के यश की रक्षा करनेवाले हैं, जिन्हे ने रणोइन में राक्षसों को मारा है ॥२॥ इन्होंने रणभूमि में राक्षसों का बध किया है, इस वाक्य से शूरता व्यजित करने की ध्वनि है। स्याम-गात कल-कञ्ज -बिलोचन । जो मारीच-सुक्षुज-मद मोचन ॥ कासल्या-सुत. सो सुख-खानी। नाम राम धनु-सायक-पानी ॥३॥ जो श्याम शरीर सुन्दर कमल के समान नेत्रवाले और मारीव तथा सुवाहु के घमण्ड को छुड़ानेवाले हैं.। वे सुन की राशि कौशल्याजी के पुत्र, हाथ में धनुष बाण लिये हैं, उनका रामचन्द्र नाम है॥३॥