पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२७९

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२२२ रामचरित मानस । गौर किसोर बेष बर काछे। कर-सर-चोप राम के पाछे। लछिमन नाम राम लघु भ्राता । सुनु सखि तासु सुमित्रा माता ॥४॥ गौर वर्ण किशोर अवस्थावाले सुन्दर वेश सवार और हाथ में धनुप-वाण लिये जो राम. चन्द्रजी के पीछे चल रहे हैं, उनका नाम लक्ष्मण 'है। वे रामचन्द्रजी के छोटे भाई है, हे सखी! सुनो, उनकी माता सुमित्राजी हैं ॥४॥ दो०-बिप्र काज करि बन्धु दोउ, मग मुनि-वधू उधारि । आये देखन चाप-मख, सुनि हरषी सब नारि ॥२२१॥ इन दोनों भाइयों ने ब्राह्मण का कार्य कर के रास्ते में मुनि-पत्नी का उद्धार किया । अब यहाँ धनुष-यज्ञ देखने आये हैं, यह सुन कर सब स्त्रियाँ प्रसन्न हुई ॥ २२१ ॥ दोनों पन्धुओ ने ब्राह्मण विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा की, गौतम मुनि की भाय- अहल्या का शाप छुड़ाया है, भव धनुष-यज्ञ देखने यहाँ आये हैं। तव उनके परोपकारी, दीन दुःख. हारी स्वभाव पर उन्हें भरोसा हुआ कि ये शूरवीर हैं, अवश्य ही धनुष तोड़ कर हम लोगों को सुखी करेंगे। ऐसा अनुमान कर सव प्रसन्न हुई। यह व्यङ्गार्थ वाच्याथं के बराबर तुल्य प्रधान गुणीभूत व्यङ्ग है। चौ० देखि राम छबि कोउ एक कहई। जोग जानकिहि यह बर अहई। जौं सखि इन्हहि देख नरनाहू। पन परिहरि हठि करइ बिबाहू ॥१॥ रामचन्द्रजी की छबि को देख कर कोई एक ललना कहती है कि जानकी के योग्य येही घर हैं। हे सखी । यदि राजा इन्हें देखेंगे तो प्रतिज्ञा को छोड़ कर हठ से विवाह कर देंगे ॥ १॥ कोउ कह ये भूपति पहिचाने । मुनि समेत सादर सनमाने ॥ 'सखि परन्तु पन राउ न तजई । विधि-बस हठिअबिबेकहि अजई ॥२॥ कोई कहने लगी कि राजा ने इन्हें पहचाना है, मुनि के सहित आदर से सत्कार किया है। परन्तु हे सखी ! राजा अपनी प्रतिक्षा को न छोड़ेंगे, वे होनहार के वश हठ से अविचार ही का सेवन करेंगे ॥२॥ कोउ कह जाँ भल अहइ बिधाता । सब कह सुनिय उचित फलदाता ॥ तो जानकिहि मिलिहि बर एहू । नाहिन आलि इहाँ सन्देहू ॥३॥ कोई कहती है कि यदि विधाता अच्छे हैं और सुनती कि सब को उचित फल देते हैं तो जानकी' को येही वर मिलेंगे। हे सखी ! इसमें सन्देह नहीं है ॥ ३॥ जौँ विधि-बस अस बनइ सँजोगू । तौ कृतकृत्य होहिं सब लोगू ॥ सखि हमरे आरति अति ताते । कबहुँक ये आवहिं एहि नाते ॥४॥ यदि दैवयोग से ऐसा संयोग बन जाय तो सब लोग कृतार्थ होंगे। हे सखी! हमें तो इसी लिए बड़ी प्राकुलता है कि कभी ये इस नाते (दामाद हो कर मेहमानी के हेतु यहाँ) 1 आवेगे?॥४॥