पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२८

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काशी में नगवा के संकटमोचन का मन्दिर, जिसके सम्बन्ध में प्रसिद्ध है कि इसको स्वयम् गोसाँई जी ने बनवाया और हनुमानजी की मूर्ति प्रतिष्ठित कराया था। उस मन्दिर में गोस्वामीजी का एक चित्र लगभग ७.७५ वर्ष की अवस्था का लगा है। उसको किसने बनवाया था, इस बात का हमें कोई पता नहीं है । उस चित्र में श्वेत वालों की लम्बी दाढ़ी और केश दिखाये गये है, किन्तु यह चित्र भी कल्पित ही जान पड़ता है। गोस्वामीजी के जीवनचरित सम्बन्धी जिन जिन घटनाओं का महात्मा रघुवरदासजा ने उल्लेख किया है वे दूसरे प्रन्थों में नहीं मिलती । इसमें सन्देह नहीं कि औरों की अपेक्षा रघुवरदासजी की बातें अधिक प्रमाणिक हैं। क्योंकि वे गोस्वामीजी के शिष्य और उनके समकालीन तथा चरित्र से पूर्ण अभिज्ञ थे। उन्होंने 'तुलसी चरित' में लिखा है कि सरवार देश के कसेयाँ ग्राम में गोस्वामीजी के परपितामह परशुराम मिश्र का जन्म हुआ था। एक बार वे तीर्थयात्रा के लिये निकले और घूमते घामते चित्रकूट आये। वहाँ हनुमानजी ने स्वप्न में उन्हें श्रादेश दिया कि तुम इल प्रान्त में निवास करो तो तुम्हारी चौथी पीढ़ी में एक विश्व विख्यात तपोपशि महापुरुष का जन्म होगा। इस स्वप्ना. देश के अनुसार परशुरामजी ने उस प्रान्त के राजा के समीप जाकर निवेदन किया, उसने सब हाल सुन कर उन्हें सम्मानपूर्वक राजापुर में बसने के लिये स्थान दिया और वे गृह निर्माण कराकर लप. स्लोक वहाँ रहने लगे। अनन्तर बहुत से मारवाड़ी उनके शिष्य हुए । उन शिष्यों द्वारा उन्हें विपुल धरती, धन और ऐश्वर्या का लाभ हुना । अन्त समय उन्हों ने काशीपुरी में जा शरीर त्याग किया । परशुराम मिश्र के पुत्र शंकर मिश्र अच्छे विद्वान और बड़े प्रतापी हुए । कहते हैं उनको वाक- सिद्धि का वर प्राप्त था । राजा और राज्यवर्ग के सभी मनुष्य उनके शिष्य हो गये । राजा से इन्हें बहुत भूमि मिली और अन्यान्य शिष्यों से भी अनन्त धन-धान्य की प्राप्ति हुई । इनके दूसरे विवाह से सन्त मिश्र तथा रुद्रनाथ मिश्र दो पुत्र हुए। रुद्रनाथ के चार पुत्र हुए, उनमें जेठे पुत्र का नाम मुरारी मिश्र था, इन्हीं सौभाग्य मूर्ति महाराज मुरारी मिश्र के तुलसीदासजी पुत्र हैं। मुरारी मिश्र के चार घेटे हुए-गणपति, महेश, तुलाराम और मङ्गल ! तुलाराम ही भकचूड़ामणि कवि सम्राट गोस्वामी तुलसीदासजी हैं। जन्म-काल। जन्मसमय के सम्बन्ध में कोई कुछ कहता है तो कोई कुछ। इतना अधिक मत- भेद है कि निश्चयपूर्वक किसी एक काल को प्रधानता देने में कठिनता अवश्य है। बाबू इन्द्रदेव नारायण ने सम्वत् १५५४ जन्मकाल लिखा है। शिवसिंहसरोज में सम्बत् १५३ और पंडित रामगुलाम, द्विवेदी ने सम्वत् १५४ विक्रमाब्द का उल्लेख किया है। निवर्सन साहब और मिश्रबन्धु आदि अधिकांश विद्वानों ने सम्बत् १५४ को ही जन्म-काल माना है। प्रथम के अनुसार १२७ वर्ष, दूसरे के अनुसार ७ वर्ष और तीसरे के अनुसार ६१ वर्ष की आयु गोस्वमीजी की मानी जाती हैं। जन्मस्थान। जिस प्रकार जन्मकान के सम्बन्ध में मतभेद है, उसी तरह जन्मस्थान के निर्णय में भी बहुमत है । कोई राजापुर को, कोई तारी को और कोई हाजीपुर को प्रधानता देते हैं। यद्यपि राजापुर