पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रथम सोपान, बालकाण्ड । २२५ चौ०--सिसु सब राम प्रेम बस जाने । प्रीति समेत निकेत बखोने ॥ निज निज रुचि सब लेहि बोलाई। सहित सनेह जाहि दोउ आई ॥१ रामचन्द्रजी ने सय थालको को प्रेम के अधीन जान कर प्रीति सहित उम (धनुष यशशोला) के स्थानों का यखान किया। अपनी अपनी इच्छानुसार सब बुला लेते हैं और स्नेह के साथ दोनों भाई (प्रत्येक के बुलाने पर चले जाते हैं ॥१॥ राम देखावहिँ अनुजहि रचना । कहि मृदु मधुर मनोहर बचना । लव निमेष महँ भुवन-निकाया । रचइ जासु अनुसोसन मायो ॥२॥ रामचन्द्रजी कोमल मधुर मनोहर वचन कह कर छोटे भाई को रचना दिखाते हैं । जिनकी आशा से माया निमेष ( पलक गिरने के समय का चौथाई ) अंश में ब्रह्माण्ड-समूह रचती है ॥२॥ भगति हेतु सोइ दीनदयाला । चितवत्त चकित धनुष-मख-साला। कौतुक देखि चले गुरु पाहीं । जानि बिलम्ब त्रास मन माहीं ॥३॥ वे ही दीनदयालु भक्ति के कारण विस्मित होकर धनुषयज्ञ-शाला को देखते हैं ! वह तमाशा देखने में देरी हुई जान कर मन में डरे और गुरुजी के पास चले ॥३॥ जासु त्रास डर कहँ डर हाई। भजन प्रभाव देखावत साई ॥ कहि बातें मृदु मधुर सुहाई। किये बिदा बालक बरिआई ॥४॥ जिनके डर से डर को भी डर होता है वे ही (परमात्मा अपने) भजन का प्रभाव दिखाते हैं। फेोमल मधुर सुहावनी बात कह कर बालकों को बरजोरी से विदा किया ॥४॥ दो०-समय सप्रेम बिनीत अति, सकुच सहित दोउ भाइ । गुरु-पद-पङ्कज नाइ सिर, बैठे आयसु.पाइ ॥ २२५ ॥ अत्यन्त प्रेम से उरते हुए नभ्रता एवम् संकोच के सहित दोनों भाई गुरुजी के चरण- कमलों में सिर नवा कर और आशा पा कर बैठ गये ॥ २२५ ॥ चौथ-निसि प्रबेस मुनि आयसु दीन्हा । सबही सन्ध्या-बंदन कीन्हा । कहत कथा इतिहास पुरानी। रुचिर रजनि जुग जाम सिरानी ॥१॥ रात्रि के प्रवेश में मुनि ने आज्ञा दी और सभी ने सन्ध्या-वन्दना की । पुरानी कथाओं का इतिहास कहते दो प्रहर सुन्दर रात्रि घीत गई ॥१॥ रुचिर रजनि, शब्द से सत्सक की महिमा व्यक्षित करने में गढ़ व्यङ्ग है। महात्माओं के सा में कथा पुराण कहते दो पहर रात व्यतीत हुई, इस लिए रात्रि को रुचिर कहा है। ."