पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२८४

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. 0 प्रथम सोपान, बालकाण्ड । २२७ भूप बाग बर देखेउ जाई। जहँ बसन्त-रितु रही लाभाई ॥ लागे बिटप - मनोहर नाना । बरन बरन बर बेलि बिताना ॥२॥ राजा जनक के श्रेष्ट वाग को जाकर देखा, जहाँ वसन्त ऋतु लोभाई रहती है। उसमें नाना प्रकार के मनोहर वृक्ष लगे हैं और रारत की उत्तम लताओं के मण्डप बने हैं ॥२॥ 'भूप याग वर' शब्द में कई तरह की ध्वनि है। यथा--"यह बगीचों का राजा है। (२) श्रेष्ट राजा का बाग है । (३) जनकजी श्रेष्ट राजा इस लिये हैं कि पृथ्वी ने उन्हें पति मान कर पुत्रीरत्न जानकीजी को दिया है। नव-पल्लव फल सुमन सुहाये । निज-सम्पत्ति सुर-रूख लजाये । चातक कोकिल कीर चकोरा । कूजत बिहँग नटत कल मोरा ॥३॥ नये नये सुहावने पत्ते, फूल और फल से लदे हुए वृक्ष अपने ऐश्वर्या के सामने कल्पवृक्ष को लज्जित कर रहे हैं। पपीहा, कोयल, सुग्गा और चकोर पक्षी बोल रहे हैं और मोर सुन्दर नाचते हैं ॥३॥ कल्पतरु को लज्जित करने के सम्बन्ध से बाग के पत्र, पुष्प और फल के सुहावनेपन की अतिशय यड़ाई करना 'सम्बन्धातिशयोक्ति अलङ्कार' है। कोयल और तोता बसन्त ऋतु में, मोर वर्षाऋतु में, चातक वर्षा और शरद में तथा चकोर शरद काल में प्रसन्न होते हैं । बसन्त तो विद्यमान ही है, किन्तु वर्षा और शरदऋतु मानने में चातक चकोरों की भाँति रूपक की ध्वनि है। पुराने वृक्षों के हरे श्याम सघन पत्ते काली घटा के समान हैं, उनमें श्वेतपुष्पों के गुन्छे वालों की पाँति, पीले पुष्प-जाल विजली, लाल पीले हरे फूलों की कतार इन्द्रधनुष, कुओं में पवन के प्रवेश से शब्द का होना मेघ का गर्जन और पुष्प रस का टपकना जलवृष्टि की भ्रान्ति उत्पन्न करते हैं जिससे मोर और चातक आनन्दित रहते हैं। श्रीजानकी के मुख. मण्डल को चन्द्रोदय अनुमान शरद ऋतु जान कर चकोर मुग्ध होते हैं। मध्य बांग सर साह सुहावा। मनि-सोपान विचित्र बनावा बिमल सलिल सरसिज बहु रङ्गा। जल-खग-कूजत गुञ्जत भूजा ॥३॥ बाग के बीच में सुहावना तालाब शोभित है, उसकी सीढ़ियाँ मणियों द्वारा विलक्षण बनावट से बनी हैं । जल निर्मल है। उसमें बहुत रज के कमल फूले हुए हैं, जल के पक्षी बोलते हैं और भ्रमर गुजार करते हैं ॥४॥ 'सोह-सुहावा' शब्द में पुनरुक्ति सी जान पड़ती है, पर पुनरुक्ति नहीं है क्योंकि साह' विशेषण है और 'सुहावा' क्रिया, इससे "पुनरुक्तिवदाभास अलङ्कार" है । जल-खग कुजत और भृगुआत में कूजत गुआत के एक अर्थ बोलने की आवृत्ति 'मर्थावृत्त दीपक' है। यदि चौपाई का इस प्रकार अर्थ किया जाय कि सरोवर के बीच में बाग अर्थात् मणियों की सीढ़ियाँ विल- पण बिना जोड़ की है। निारे पर खड़े होने से सारे बगीचे के वृक्षों का प्रतिविम्ब उसमें दिखाई देता है, इससे बाग की शोभा तालाब से औe are ही सरकार से हो रही है। सबभन्योन्य अलङ्कार' होगा।