पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२९२

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& प्रथम सोपान, बालकाण्ड । २३५ भाल तिलक लम-बिन्दु सुहाये । सवन सुभग भूषन छबि छाये ॥ विकट भृकुटि कच · घूघुरबार । नव-सरोज लोचन रतनारे ॥२॥ माथे पर तिलक और पसीने की चूदै सुहा रही हैं और कानों में सुन्दर भूषणों की छवि छाई हुई है। टेढ़ी भौहे, धूघरवाले बाल और नवीन कमल के समान लाल नेत्र हैं ॥२॥ चारु चिबुक नासिका कपोला । हास बिलास लेत मन मोला । मुख-छबि कहि न जाइ माहि पाहीं । जो बिलोकि बहु काम लजाहीं ॥३॥ छुड्डी, नाक श्रार गाल मनोहर हैं, मुस्कुराने का श्रानन्द मन को मोल ले लेता है । मुख की शोभा मुझ से कही नहीं जाती, जिसे देख कर बहुत से काम लजा जाते हैं ॥३॥ पूर्वार्द्ध में-गम्योत्प्रेक्षा है । क्योंकि हास विलास ( माने) मन को मोल लेता हो, बिना वाचक पद के उत्प्रेक्षा की गई है । उराई में उपमेय की बराबरी में उपमान का व्यर्थ होना 'पञ्चम प्रतीप अलंकार' है। उर-मनि-माल कम्बु कल ग्रीवाँ । काम-कलम-कर भुज बल सीवाँ । सुमन समेत बाम कर दोना । साँवर कुँवर सखी सुठि लाना ॥४॥ हृदय में मणियों की माला और शङ्ख के समान सुन्दर गला है, कामदेव रूपी हाथी के बच्चे के मुड़ के समान बल की हद भुजाएँ हैं। एक दूसरी से कहती है-हे सखी । ये श्या- "मल कुअर जो बायें हाथ में फूलों सहित दोना लिए हैं, वे बड़े ही सुन्दर हैं nen . कामदेव-हाथी का सूड उत्कर्ष का कारण नहीं है, क्योंकि हाथी का सूड़े उतार चढ़ाव होता है, यहाँ उपमा से केवल इतना ही तात्पर्य है तो भी काम-कलम कर की कल्पना करना 'प्रौढोक्ति अलंकार' है दो-केहरि-कटि पट-पीत-धर, सुखमा-सोलनिधान । देखि भानुकुलभूषनहि, बिसरा सखिन्हें अपान ॥२३३॥ सिंह के समान पतली कमर, पीताम्बर पहने हुए, शोभा और शील के भण्डार हैं। सूर्याकुल के भूषण को देख कर सस्त्रियाँ अपनी सुध भूल गई ॥२३॥ यहाँ सम्पूर्ण सखियों को अपनी सुध भूल जाना और चेष्टा रहित होना 'प्रलय सात्विक चौ.-धरि धीरज,एक आलि सयानी। सीता सन बाली गहि पानी॥ बहुरि गौरि कर ध्यान धरेहू । भूप-किसोर देखि किन लेहू ॥१॥ एक चतुर सखो धीरज धर कर सीताजी से उनका हाथ थाम कर बोली-पार्वतीजी का ध्यान फिर धरना, राजकुमार को क्यों नहीं देख लेती हो ? ॥१॥ सीताजी का रामचन्द्रजी के प्रेम में मग्न होना, इस प्रकट चान्त को छिपाने की इच्छा से पार्वतीजी के ध्यान के बहाने सचेत करना 'व्यजोक्ति अलंकार' है । बोधव्य जानकी . । अनुभाव' है। !