पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२९६

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मोर मनोरथ जानहु प्रथम सोपान, बालकाण्ड । २३९ नीके । बसहु सदा उर-पुर सबही के ॥ कीन्हेउँ प्रगट 'न कारन तेही । अस कहि चरन गहे बैदेही ॥२॥ आप मेरे मनोरथ को अच्छी तरह जानती हैं, क्योंकि सबके मन-मन्दिर में निवास करती हो इससे कारण प्रकट नहीं किया, ऐसा कह कर जानकीजीने पाँवपकड़ कर प्रणाम किया ॥२॥ यहाँ 'सब ही, शब्द व्यजक है । जो सब के सदा अन्तःपुर में निवास करता है उससे हृदय की बात छिपी नहीं रहती। मेरा मनोरथ ( रामचन्द्रजी वर मिलें ) आप भली भाँति जानती हो क्योकि मृदय निवासिनी हो इससे प्रकट नहीं कहती हूँ।यह अस्फुट गुणीभूत व्यत्र है। बिनय प्रेम-बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी ॥ सादर सिय प्रसाद सिर धरेज । बाली गौरि हरष हिय भरेऊ ॥३॥ सीताजीकी विनती सुनकर भवानी प्रेम के अधीन हो गई, माला नीचे गिरी और मूर्ति मुस्कुराई । सीताजी ने आदर से प्रसाद रूप उस माला को सिर पर धारण किया, गिरिजा का हदय आनन्द से भर गया। वे बोली ॥३॥ यहाँ मनोरथ स्पष्ट न कह कर सीताजी ने बिनती की, उनके मनका अभिप्राय समझा कर गिरजाजी ने अपना तात्पर्य्य माला गिरा कर सूचित कर दिया कि ऐसा ही होगा 'सूक्ष्म अलङ्कार' है। मूर्ति के मुस्कुराने में सीताजी की महिमा व्यजित करने की गूढ़ ब्यङ्ग है कि "जासु अंस उपजहिँ गुनखानी । अगनित लच्छि उमा ब्रह्मानी" वे मुझसे इस प्रकार दीन है। कर प्रार्थना करती हैं मानों कोई साधारण लड़किनी हो । शङ्को इस बात की है कि जब गिरिजा ने प्रसन्न होकर माला प्रसाद रूप गिरा दिया, तव हाथ से क्यों नहीं दिया ? उत्तर-सीताजी श्यामल रूप हृदय में बसा चुकी हैं, इस कारण हाथ से माला नहीं दिया। इस चौपाई में भी लोग तरह तरह के अर्थ करते हैं, प्रत्येक का उल्लेख करना व्यर्थ है। सुनु सिय सत्य असीस हमारी । पूजिहि मन-कामना तुम्हारी ॥ नारद बचन सदा सुचि साँचा। सो बर मिलिहि जाहि मन राँची॥४॥ हे सीताजी ! सुनिए, मेरा आशीर्वाद सत्य होगा, आपकी मनोकामना पूरी होगी। नारद जी का वचन सदा पवित्र और सच्चा है, जिनसे मन लगा है वह वर आप को मिलेंगे॥४॥ हरिगीतिका- छन्द। मन जाहिराचेउ मिलिहि सो घर- सहज सुन्दर साँवरो। करुनानिधान सुजान सील सनेह जानत रावरो॥ एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हिय हरषित अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मन्दिर चली ॥१८॥ जिन सहज सुन्दर श्यामल वर में आप का मन लगा हुआ है, वे ही वर मिलेंगे। यानिधान श्रेष्ठ शाता श्राप के शील स्नेह को जानते हैं। इस तरह गौरीजी के आशीर्वाद .