पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२९९

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२४२ रामचरित मानस । चौ०-नृप सब नखत करहिँ उँजियारी । दारिन सकहिं चाप तम मारी॥ कमल-कोक-मधुकर-खग नाना । हरषे सकल निसा अवसाना ॥१॥ सब राजा तारागणों के समान इजेला करते हैं, परन्तु धनुप रूपी मारी अन्धकार को वे नहीं हटा सकते । रात्रि का अन्त होने से कमल, चकवा, भ्रमर और नाना प्रकार के सप विहा आनन्दित हुप हैं ॥१॥ ऐसेहि प्रभु सब भगत तुम्हारे । हाइहहिँ टूटे धनुष सुखारे ॥ उयेउ भानु बिनु स्वम तम नासा । दुरे नखत जग तेज प्रकोसा ॥२॥ हे प्रभो । इसी तरह धनुष टूटने पर आप के सव भक्त सुस्त्री होंगे। सूर्योदय से बिना परिश्रम ही अन्धकार नष्ट हो गया और नक्षत्र छिप गये, जगत् में कान्ति का प्रकाश हुभा ॥२॥ सूर्योदय कारण और तम का नाश होना कार्य साथ ही वर्णन 'प्रथम हेतु अलंकार' है। यहाँ एक सूर्योदय से विना श्रम तमन्नाश, तारागणों का छिपना और जगत् मै तेज प्रकाशित होना 'कारक दीपक अलंकार' का सन्देहसकर है।

  • रबि निज उदय ब्याज रघुराया । प्रभु प्रताप सब न पन्ह देखाया॥

तव-भुज-बल-महिमा उदघाटी । प्रगटी धनु विघटन परिपाटी ॥३॥ हे रघुराज ! सूर्य उदय के बहाने आप का प्रताप सब राजाओं को दिखाया है। श्राप के भुजबल की महिमा उद्घाटित (प्रकाशित ) करने के लिए धनुष तोड़ने की पद्धति निकली है ॥३॥ यहाँ लक्ष्मणजी का यह कहना कि सूर्य उदय हो कर अहने उदय के बहाने संघ राजाओं को श्राप का प्रतापोदय दिखाता है । 'व्याज' शब्द से और का और कहना 'कैतवापस ति अल कार' है। उत्तरार्द्ध में रघुनाजीके भुजवल की अगाधता और धनुप को कठोरता का अनुमान कर के यह जान लेना कि धनुष श्राप ही तोड़ेंगे 'भनुमानप्रमाण अलंकार है । लक्ष्मण जो को अभीष्ट तो है रामचन्द्रजी को भुजाओं का बल वर्णन करना, अपने इस अभिप्राय को सूर्योदय के बहाने प्रकट करने में द्वितीय पायोक्ति अलंकार है । इस प्रकार यहाँ सन्देह- सङ्कर है । उद्घाटन शब्द का पर्यायवाची प्रकाशित करना, प्रकट करना, खोलना और उघाड़ना शब्द है । परिपाटी-'रोति, चाल, प्रणाली, शैली, पद्धति, क्रम, सिलसिला' को कहते हैं । शब्द के अनुकूल ऊपर अर्थ किया गया है। कोई कोई उद्घाटी को उदयाचल पर्वतः कहते हैं बन्धु बचन सुनि प्रभु मुसुकाने । होइ सुचि सहज पुनीत नहाने । नित्यक्रिया करि गुरु पहिँ आये । चरन-सरोज सुभग सिर नाये ॥४॥ भाई के वचन सुन कर प्रभु रामचन्द्रजी मुस्कुराये और जोस्वाभाविक पवित्र हैं-शौचादि से निवृत्त हो कर स्नान किया। नित्यकर्म कर के गुरु के पास आये और उनके सुन्दर चरण भाई की बात सुन कर मुस्कुराने से प्रसन्नता व्यजित करने की ध्वनि है । । कमलों में सिर नवाया था