पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३००

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । सतानन्द तब जनक बोलाये । कैासिक मुनि पहि तुरत पठाये। जनक बिनय तिन्ह आइ सुनाई । हरषे बालि लिये दोउ भाई ॥५॥ तब राजा जनक ने शतानन्दजी को बुलाया और विश्वामित्र मुनि के पास तुरन्त भेजा। उन्होंने आकर जनकजी की विनती सुनाई, मुनि ने प्रसन्न हो कर दोनों भाइयों को बुला लिया॥५॥ दो०-सतानन्द पद बन्दि प्रभु, बैठे गुरु पहिँ जाइ । ॥ चलहु तात मुनि कहेउ तब, पठयउ जनक बेलाइ ॥२३॥ शतानन्दजी के चरणों की वन्दना करके प्रभु रामचन्द्रजी गुरु के पास बैठ गये। तब श्वामित्र मुनि ने कहा-हे तात ! जनकजी ने बुलावा भेजा है,, चलिए ॥२३॥ चौ०-सीय-स्वयम्बर देखिय जाई। ईस काहि धौं देह बड़ाई। लखन कहा जस भाजन सोई । नाथ-कृपा-तव जा पर हाई ॥१॥ सीताजी का स्वयम्बर चल कर देखिए, न जाने ईश्वर किस को बड़ाई देगा ? लक्ष्मणजी ने कहा- हे नाथ ! जिस पर आपकी कृपा होगी, वहीं यश का पात्र होगा ॥१॥ हरष मुनि सब सुनि बर बानी । दीन्ह असीस सबहि सुख मानी ॥ पुनि मुनि-बन्द समेत कृपाला । देखन चले धनुष-मख-साला'॥ २ ॥ श्रेष्ठ वाणी सुन कर सब मुनि प्रसन्न हुए और सभी ने सुखी होकर आशीर्वाद दिया। फिर मुनि-मण्डली के सहित कृपालु रामचन्द्रजी धनुष-यज्ञशाला देखने के लिए चले ॥२॥ रङ्गभूमि आये दोउ भाई । असि सुधि सब पुरबासिन्ह पाई ॥ चले सकल गृह-कोज बिसारी । बाल जुवान. जरठ नर नारी ॥ ३ ॥ दोनों भाई रङ्गभूमि में श्राये, ऐसी खबर सब नगर निवासियों को मिली। बालक, युवा और वृद्ध सब स्त्री-पुरुष गृहकार्य भुला कर चले ॥३॥ देखी जनक भीर भइ भारी । सुचि सेवक सब लिये हँकारी ॥ तुरत सकल लोगन्ह पहिँ जाहू । आसन उचित देहु सब काहू ॥ ४ ॥ जनकजी ने देखा कि बड़ी भीड़ हुई, तब उन्होंने सब सच्चरित्र सेवकों को बुलवा लिया और कहा--तुरन्त सब लोगों के पास जाओ और सब को योग्य श्रासन दो ॥ ४॥ यहाँ 'शुचि' शब्द से सच्चरित्र, सदाचारी और सुचतुर व्यजित करने की ध्वनि है। दो-कहि मृदु बचन बिनीत तिन्ह, बैठारे उत्तम मध्यम नीच लघु, निज निज थल अनुहारि ॥२४०॥ उन सेवकों ने नम्रता से कोमल वचन कह कर स्त्री-पुरुषों को बैठाया। उत्तम, मध्यम, नीच और लघु सब को अपने २ स्थान के अनुसार जगह दी ॥ २४० ॥ नारि ।