पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३०५

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रामचरित-मानस । रहे। चौ०-प्रभुहि देखि सब नुप हिय हारे । जनु राकेस उदय भये तारे॥ अस प्रतीति सब के मन माहीं । राम चाप तारब सक नाहीं ॥१॥ प्रभु रामचन्द्रजी को देख कर सब राजा हदय में हार गये, वे ऐसे मालूम होते हैं मानी चन्द्रमा के उगने पर तारागण हो । सब के मन में ऐसा विश्वास हो रहा है कि रामचन्द्रजी : धनुष तोड़ेगे इसमें सन्देह नहीं ॥१॥ चन्द्रमा के उदय से तारागणे की ज्योति मन्द होती ही है । यह 'उक्तविषया वस्तूस्प्रेक्षा अलंकार' है। रघुनाथजी की शूरता की ऐड़ और प्रताप को देख कर अनुमान से यह निश्चय करना कि ये निस्तदेह धनुष तोड़ेंगे, 'अनुमान प्रमाण अलंकार' है। बिनु भब्जेहु अव-धनुष विसाला । मेलिहि सीय राम उर माला । अस बिचारि गवनहु घर भाई । जस प्रताप बल तेज गँवाई ॥२॥ विशाल शिव-धनुष को बिना तोड़े ही सीताजी रामचन्द्र के हदय में जयमाल पहिना- वेगी। हे भाई ! ऐसा विचार कर यश, प्रताप, बल और तेज खो कर अपने अपने घर । जाते जाश्रो ॥२॥ यश, प्रताप, घल और तेज अनेक उपमेयों का एक धर्म "गवाना वर्णन 'प्रथम तुल्य- योगिता अलंकार' है। बिहँसे अपर भूप सुनि बानी । जे अबिबेक अन्ध अभिमानी ॥ तारेहु धनुष ब्याह अवगाहा । बिनु तारे को कुंवरि बियाहा ॥३॥ दूसरे राजा जो अज्ञान से अन्धे और घमण्डी हैं, वे इस बात को सुन कर हँसे । उन्होंने कहा-धनुष तोड़ने पर विवाह होना कठिन है, फिर बिना तोड़े कुमारी को कौन ब्याहेगा ॥३॥ रामचन्द्रजी का उत्कर्ष' धमण्डी राजाओं को असहन होना और दर्द भरी बाते कहना 'स्या समचारी भाव' है। एक बार कालहु किन होऊ । सिय हित समर जितब हम सोज । यह सुनि अपर भूप मुसुकाने । धरमसील हरिभगत सयाने ॥४॥ एक बार काल ही क्यों न हो, सीता के निमित्त हम उसे भी लड़ाई में जीतेंगे। यह सुन कर अन्य जो धर्मात्मा, हरिभक्त और चतुर राजा हैं, वे मुस्कुराने लगे ॥ ४ ॥ मुस्कुराने में गर्वीले राजाओं के प्रति घृणा और तिरस्कार सूचक गुणीभूत व्यङ्ग है ! सो-सीय बियाहब राम, गरब दूरि करि नुपन्ह को । जीति को सक सङ्ग्राम, दसरथ के रन-बाँकुरे ॥२४५। साधुराजा बोले-राजाओं के गर्व को दूर कर के रामचन्द्रजी सीताजी को विवाहेंगे। भला ! दशरथजी के रणबाँके पुत्रों को युद्ध में कौन जीत सकता है ? ॥ २४५ ॥