पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३२०

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। 1 प्रथम सोपान, बालकाण्ड । न होते जाओ। रामचन्द्रजी शङ्कर-धनु को तोड़ना चाहते हैं, मेरी आहा सुन कर तुम लोग सावधान रहों ॥१॥ रामचन्द्रजी को धनुष की ओर दृष्टिपात करते देख कर लक्ष्मयाजी का धरती को चरण से दबाना और वाराहपुराण की उक्ति के अनुसार पृथ्वी के थामनेवालों को सावधान करना 'खुदम अलंकार' है। चाप समीप राम जब आये । नर नारिन्ह सुर सुकृत मनाये ॥ सब कर संसय अरु अज्ञानू । मन्द महीपन्ह कर अभिमानू ॥२॥ जब रामचन्द्रजी धनुष के समीप आये, तब स्त्री-पुरुष देवता और सुकृतको मनाने लगे सब का सन्देह और अक्षान, नीच राजाओं का अभिमान ॥२॥ भृगुपति केरि गरब गरुआई। सुर-मुनिबरनह केरि कदराई ॥ सिय कर सोच जनक पछितावा । रानिन्ह कर दारुन-दुख-दावा ॥३॥ परशुराम के गर्व का भारीपन, देवता और मुनिवरों की भीकता, सीताजी का सोच, जनक का पश्चाताप और रानियों के भीषण दुःख की ज्वाला ॥३॥ परशुराम का गर्ष दूर होना पहले ही कहा गया जो भविष्य में परस्पर सम्बाद होने पर दूर होगा 'भाविक अलंकार है। सम्भु-चाप बड़ बोहित पाई। चढ़े जाइ सब सङ्ग बनाई ॥ राम-बाहुबल, सिन्धु अपारू । चहत पार नहि कोड कनहारू ॥४॥ शिव-धनुष रूपी वड़ा जहाज पा कर सब लङ्ग बना कर उस पर जा चढ़े । रामचन्द्रजी की भुजाओं का बल अपार समुद्र है, उससे पार जाना चाहते हैं परन्तु कोई खेनेवाला माँझी नहीं है॥४॥ अनेक उपमेयों का एक ही धर्म जहाज पर चढ़ना कथन 'मि तुल्ययोगिता अलंकार' है। जैसे बिना नाविक के जहाज समुद्र में भटकता है और तूफान में पड़कर डूब जाता है। धनुष रूपी जहाज के लिए रामचन्द्रजी का बाहुवल भयङ्कर तूफान है, उसमें डूबेगा। यह बात धनुष टूट जाने पर नीचे के सोरठे में कही गई है। दो०-राम बिलोके लोग सब, चित्र लिखे से देखि । चितई सोय कृपायतन, जानी बिकल बिसेखि ॥२६॥ रामचन्द्रजी ने सब लोगों को देखा, उन्हें लिखी हुई तसबीर के समान देख कर, फिर कृपानिधान ने सीताजी की ओर निहारा और उनको अधिक व्याकुल जाना ॥२६०॥ धौ-देखी बिपुल बिकल बैदेही । निमिष बिहोत कलप सम तेही । दृषित बारि बिनु जो तनु त्यागा । मुये करइ का सुधा तड़ागा ॥१॥ जानकीजी को बहुत ही बेचैन देखा कि एक एक पल उन्हें कल्प के समान बीत रहा है। रामचन्द्रजी मन में विचारने लगे कि जो प्यासा बिना पानी के शरीर त्याग दे, फिर मर जाने पर अमृत का तालाब ही क्या कर सकता है ? ॥१॥ शक्षा-अब तो मुर्दे को जिला देता है, फिर सुधा तड़ाग को क्यों व्यर्थ कहा गया। 1