पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३२८

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । २७१ रानिन्ह सहित सोच बस सीयो । अब धौँ बिधिहि काह करनीया ॥ भूप बचन सुनि इत उत तकहीं। लखन राम-डर बोलि न सकहीं ॥४॥ सीताजी के सहित सब रोनियाँ सोच के वश होकर कहने लगी कि श्रवन जाने ब्रह्मा को क्या करना है ? राजाओं की बात सुन कर लक्ष्मणजी इधर उधर निहारते हैं, परन्तु रामचन्द्रजी के डर से बोल नहीं सकते हैं ॥४॥ रानियों के मन में इस आकस्मिक दुर्घटना द्वाराबने हुए काम में बिगड़ने की सम्भावना से इष्टहानि का सोच उत्पन्न होना त्रास, उग्रंता, विषाद, आवेग और शङ्का सञ्चारीभाव है। लक्ष्मणजी के मन में राजाओं के अहंकार को नष्ट करने की उत्कट इच्छा उत्पन्न होना 'अमर्ष सञ्चारी भाव है। दो-अरुन-नयन भृकुटी-कुटिल, चितवत पन्ह सकोप । मनहूँ मत्त-गज-गन निरखि, सिंह किसोरहि चोप ॥२६॥ आँखे लाल और भौंह टेढ़ी हुई क्रोध से राजाओं की ओर देख रहे हैं। ऐसे मालूम होते हैं मानों किशोर अवस्था का सिंह मतवाले हाथियों के झुण्ड को उमङ्ग से निहारता हो ॥२६॥ सिंह मस्त हाथियों के समूह को चाव से देखता ही है, उसी तरह चोप से लक्ष्मणजी नरेशों की ओर निहारते हैं । यह पोररस पूर्ण 'उक्तविषया वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार' है। चौ०-खरसर देखि विकल पुर-नारी । सबमिलि देहि महीपन्ह गारो॥ तेहि अवसर सुनि सिव-धनु-अङ्गा । आयउ भृगुकुल कमल-पनङ्गा ॥१॥ खलभली (हलचल ) देख कर नगर की स्त्रियाँ ब्याकुल हो गई, सब मिलकर राजाओं को गाली देती हैं। उसी समय शिव-धन टूटने का शब्द सुन कर भगुकुल रूपी कमल के सूर्य (परशुरामजी) आये ॥१॥ देखि महीप सकल सकुचाने । बाज झपट जनु लवा लुकाने ॥ गौर शरीर भूति मलि भाजा। माल घिसाल त्रिपुंड बिराजा ॥२॥ उन्हें देख कर समस्त राजा सिकुड़ गये, वे ऐसे मालूम होते हैं मानों बाज़ की झपट से बटेर लुकते ।। परशुरामजी का शरीर गौर वर्ण है, उस पर विभूति अच्छी तरह शोभित है और विशाल माथे पर त्रिपुण्ड विराजमान है ॥२॥ सोस-जदा सास-बदन सुहावा । रिस-बस कछुक अरुन होइ आवा । भृकुटी-कुटिल नयन रिस राते। सहजहुँ चितवत मनहुँ रिसाते ॥३॥ सिर पर जटा और चन्द्रमा के समान सुहावना मुख क्रोध से कुछ लाल हो पाया है। भौंहे टेढ़ी और आँखें गुस्से से लाल हो गई हैं, सहज ही निहारते हैं तो ऐसा मालूम होता है मानों रुष्ट होकर देख रहे हो ॥३॥ धनुष भंग की ध्वनि सुन कर परशुरामजी को अभी अल्प क्रोध स्थायी है, उसकी अल्पता 'कछुक' शन्द द्वारा प्रकट की गई है। आगे चलकर वह पूर्ण रस रूप होगा। .