पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३३२

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । २७३ राम लखन दसरथ के ढोटा। दीन्हि असीस देखि भल जोटा । रामहि चितइ रहे थकि लोचन । रूप अपार-मार-मद मोचन ॥४॥ विश्वामित्रजी ने कहा-रामलक्ष्मण राजा दशरथ के पुत्र हैं, अच्छी जोड़ी देख कर (परशुरामजी ने) आशीर्वाद दिया। असंख्यों कामदेव के घमण्ड को छुड़ानेवाला रामचन्द्रजी का सप आँख ले देख कर मोहित हो रहे हैं ॥४॥ सभा की प्रति में पाठ है कि-"देखि असीस दीन्ह भल जोटा, और रामहि चितह रहे भरि लोचन । दो०-बहुरि बिलोकि बिदेह सन, कहहु काह अति भीर । पूछत जानि अजान जिमि, ब्यापेउ कोप सरीर ॥२६॥ फिर राजा जनक की ओर देख कर उनसे बोले-कहो, बड़ी भीर क्यों हुई है.१ जान कर भी अनजान जैसे पूछते हैं और शरीर में क्रोध व्याप गया ॥२६॥ चौ०-समाचार कहि जनक सुनाये । जेहि कारन महीप सब आये ॥ सुनत बचन फिरि अनत निहारे । देखे चाँप-खंड महि डारे ॥१॥ जिस कारण सब राजा आये हैं, जनकजी ने वह समाचार कह सुनाया। उनकी बात सुनते ही घूम कर दूसरी ओर निहारा तो देखा कि धनुष के टुकड़े धरती पर पडे हैं ॥१॥ अपने गुरु का पूजनीय धनुष टूटा हुआ और ज़मीन पर निरादर से फेंका देखकर हदय का चञ्चल होना 'चपलता संचारीभाव है। अति रिस बोलें बचन कठोरा । कहु जड़ जनक धनुष केइ तोरा । बेगि देखाउ मूढ़ न त आजू । उलटउँ महि जहँ लगि तव राजू ॥२॥ अत्यन्त क्रोध से कठोर वचन वोले-अरे मूर्ख जनक ! कह तो सही, धनुष किसने तोड़ा. है ? रे नादान ! जल्दी दिखादे, नहीं तो आज मैं जहाँ तक तेरा राज्य है उस धरती को उलट दूंगा ॥२॥ परशुरामजी जनक के प्रति जो निर्दयता पूर्ण कठोर वचन कहते हैं, वह 'उzar सवारीमाव' है। अति डर उतर देत नृप नाही। कुटिल भूप हरषे मन माहीं । सुर मुनि नाग नगर नर-नारी । सोचहिँ सकल त्रास उर भारी ॥३॥ अत्यन्त डर से राजा जनक उत्तर नहीं देते हैं, यह देख कर दुष्ट राजा मन में प्रसन्न हुए। देवता, मुनि, नाग, नगर के स्त्री-पुरुष सब के हदय में भारी त्रास उत्पन्न है, के सोचते हैं (कि अब क्या होगा?) ॥३॥ वीर पुरुष की शूरता के भय से लोगों का सचिन्त होना त्रास सञ्चारी भाव' है। . . ३५