पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३५०

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. प्रथम सोपान, बालकाण्ड । २१ हरषि चले निज निज गृह आये। पुनि परिचारक बालि पठाये । रचहु बिचित्र बितान बनाई। सिर धरि बचन चले सचु पाई ॥३॥ वे (महाजन) प्रसन्न हो कर चले और अपने अपने घर आये, फिर सेवकों नौकरों) को वुलवा भेजो और उन्हें आशा दी कि विलक्षण मण्डप बना कर तैयार करे, वे सब नाज्ञा शिरोधार्य कर प्रसन्न होकर चले ॥३॥ पठये बालि गुनी तिन्ह नाना । जे मितान विधि कुसल सुजाना । बिधिहि बन्दि तिन्ह कीन्ह अरम्माविरचे कनक कदलि के खम्मा॥ उन (सेवकों) ने अनेक कारीगरों को बुलवा भेजा जो मण्डप बनाने के विधान में निपुण और अच्छे चतुर हैं । ब्रह्मा की वन्दना कर के उन्होंने कार्यारम्भ किया, पहले सुवर्ण के कैले के खम्भे वनगये ॥४॥ प्रथम ब्रह्मा की बन्दना कर कदली के खम्भ बनाना दोनों बातें सामिप्राय है। ब्रह्मा विधान के प्रधान देवता हैं और केले का वृक्ष मांगलीक है। इससे पहले उसी का निर्माण किया। दो०-हरित-मनिन्ह के. पन्न फल, पदुमराग के फूल । रचना देखि बिचित्र अति, मन बिच्चि कर भूल ॥२८॥ हरियर-मणियों के पत्ते पवम् फल बनाये और मालिक के (लाल) फूल लगाये । अत्यन्त विलक्षण बनावट को देख कर नहां का मन भूल जाता है ॥ २७ ॥ चौधेनु हरित-मनि-मय सब कीन्हे। सरल सुपरन परहिँ नहिं चोन्है। कनक कलित अहिबेलि बनाई। लखि नहिं परइ सपरन सुहाई ॥१॥ हरी हरी मणियों के सब बाँस बनाये, वे सीधे पत्तों के सहित पहचाने नहीं जाते हैं। सोने की सुन्दर पान की लता बनाई, वह सुहावनी पत्तों के सहित लखाव में नहीं आती कि बनावटी है ॥१॥

बाँस और नागबल्ली में असली-नकली का भेद न प्रकट होना मीलित अलंकार' है।

तेहि के रचि पचि बन्ध बनाये । बिच बिच मुकुता-दाम लगाये । मानिक मरकत कुलिस पिरोजा। चोरि कोरि पचि रचे सरोजा ॥२॥ उन बेलों का निर्माण करके जड़ कर बन्धन बनाया, बीच बीच में मोतियों की सुहावयी मालाएँ लटकाई । लाल, पना, हीरा और फिरोजां चारों रनों को चीर, रेत और जड़ कर कमल बनाये ॥२॥ माणिक-ताल रङ्ग के कमल, मरकत या अमुरंद-हरित रङ्ग, हीरा-सफेद रक और पिरोजा के पीले रज के कमल निर्माण किये।