पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३५६

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । २९७ दो-चलहु बेगि सुनि गुरु बचन, भलेहि नाथ सिर नाइ ॥ भूपति गवने भवन तब, दूतन्ह बास देवाइ ॥२४॥ शीघ्र ही चलो, गुरु के वचन को सुन कर राजा ने सिर नवा कर कहाँ-बहुत अच्छा स्वामिन् । तव दूतों को ठहरने का प्रबन्ध कर आप राजमहल में गये ॥ २६४ ॥ चौ-राजा सब रनिवास बोलाई । जनक-पत्रिका बाँचि सुनाई ॥ सुनि सन्देस सकल हरषानी । अपर कथा सब भूप बखानी ॥१॥ राजा ने समस्त रनिवास को बुला कर जनकजी की चिट्ठी पढ़ सुनाई। उस सन्देश को सुन कर सब रानियाँ हर्षित हुई और सब समाचार राजा ने (जो दूतों से जवानी मालूम दुआ था ) वर्णन किया ॥१॥ प्रेम-प्रफुल्लित राजहिँ रानी । मनहुँ सिखिनि सुनि बारित बानी ॥ मुदित असीस देहि गुरु नारी । अति आनन्द मगन महतारी ॥२॥ प्रेम से आनन्दित रानियों शोभित हो रही हैं, वे ऐसी मालूम होती है मानों मेधों के शब्द सुन कर मोरनी प्रसन्न हुई है। । यड़ी वृद्ध त्रियाँ हर्षित हो कर आशीर्वाद देती हैं, माताएं अत्यन्त आनन्द में.मन हैं ॥२॥ लेहि परसपर अति प्रिय पाती। हृदय लगाइ जुड़ावहिँ छाती ॥ राम लखन के कीरति · करनी । बारहि बार भूप-बर बरनी ॥३॥ अत्यन्त प्रिय पत्रिका को बारी बारी से ले कर पदय में लगा कर छाती ठण्डी करती हैं। रामलक्ष्मण की कीर्ति और करनी को भूप वर ने बारम्बार वर्णन किया ॥३॥ 'जुड़ावहिँ छाती से रामचन्द्रजी की विरहाग्नि से तय होने की व्यञ्जना अगढ़ व्या है। मुनि प्रसाद कहि द्वार सिधाये । रानिन्ह तब महिदेव बोलाये ॥ दिये दान आनन्द समेता । चले विप्र-बर आसिष देतां ॥४॥ मुनि ( विश्वामित्र) की कृपा का फल कह कर दरवाजे पर बाहर गये, तब रानियों ने ब्राह्मणों को बुलवाया। उन्हें श्रानन्द के साथ दान दिये, विप्रवर घाशीर्वाद देते हुए चले ॥३॥ सो-जाचक लिये हकारि, दीन्हि निछावर कोटि बिधि । चिरजीवहु सुत चारि, चक्रवति दुसरत्थ के मानों को बुलवा लिये और उन्हें करोड़ों प्रकार की न्योछावर दी। वे सब कहते हैं- चक्रवर्ती सहाराज दशरथजी के बारौ पुत्र चिरञ्जीवी हो ॥२६५]] चौ०-कहत चले पहिरे पट नाना। हरषि हने गहगहे निसाना ॥ समाचार सब लोगन्ह पाये । लागे घर घर होन बधाये ॥१॥ इस तरह कहते हुए ये नाना प्रकार के वस्त्र पहन कर चले और प्रसन्न होकर धूम से. 'नगारे बजाने लगे। यह समाचार सब लोगों ने पाया, घर घर मङ्गल गान होने लगा ॥२॥