पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३५७

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रामचरिस-मानस । भुवन चोरि-दस भरा उछाहू । जनकसुता-रघुधीर विधाहू ॥ सुनि सुभ' कथा लेोग अनुरागे। मग-गृह-गली सँवारन लागे ॥२॥ जनकनन्दिनी और रघुनाथजी के विवाह का उत्साह चौदहों लोकों में भर गया। इस शुभ वृत्तान्त को सुन कर लोग प्रेम में मग्न हो रास्ता, गली और घरों को सजाने लगे ॥२॥ सभा की प्रति में 'भुवन चारि दस भयउ उछाह' पाठ है। जद्यपि अवध सदैव सुहावनि । रामपुरी मङ्गल-मय पावनि ॥ तदपि प्रीति कै रीति सुहाई । मङ्गल-रचना रची बनाई ॥३॥ यद्यपि रामचन्द्रजी की पुरी अयोध्या, मङ्गल रूप, पवित्र, सदा सुहावनी है तो भी प्रीति की रीति के अनुसार सुन्दर महल रचनाएँ बना कर सजाई गयीं ॥३॥ अयोध्यापुरी सदा सुहावनी है, यह विशेष बात कही गई। इसका समर्थन साधारण सिद्धान्त से करना कि रामपुरी होने से महलमय पवित्र है। इतने से सन्तुष्ट न हो कर पुनः विशेष उदाहरण से पुष्ट करना कि तो भी प्रीति की रीति सुन्दर मझल रचना रचवाती है 'विकस्वर अलंकार' है। ध्वज पताक पट चामर चारू । छावा परम-विचित्र बजारू ॥ कनक कलस तारन मनि-जाला । हरद दूब दधि अच्छत माला ॥il : बाजार, सुन्दर ध्वजा, पताका, घस्न और चँवरों से अतिशय विलक्षण छाया हुआ है। सुवर्ण के कलश, चन्दनवार, रन-समूह, हलवी, दूध, दही, अक्षत और माला से ॥४॥ दो-मङ्गल भय निज निज भवन, लोगन्ह रचे बनाइ । बीथी साँची चतुरसम, चौके चारु पुराइ ॥ २६ ॥ सब लोगों ने अपने अपने घरों को सज कर माल-रूप बनाये । चतुस्सम से गलियाँ सींची गई और सुन्दर चौक पुरघाए ॥२९॥ २ भाग कस्तूरी, ३ भाग कपूर, ३भाग केसर और ४ भाग चन्दन से बने जल को चतुस्सम कहते हैं। यह सुगन्धित जल मङ्गल कार्य- के समय निर्मित किया जाता है। चौ०-जहँतहँजूथंजूधमिलिभामिनि ।सजिनव-सपत सकल दुति दामिनि॥ विधु-बदनीमृग-सावक-लोचनि । निज-सरूप रति-मान-बिमाचनि ॥१॥ जहाँ तहाँ झुण्ड की मुण्ड सम्पूर्ण विजली की कान्तिवाली स्त्रियाँ मिल कर सोलहो. क्षार सजे हुए, चन्द्राननी, बाल मृगनैनी जो अपनी छवि के आगे रति के गर्व को छुड़ाने पाली हैं ॥१॥ सोलही शुगार ये हैं-"(१) अहो को पवित्र करना । (२) स्नान । (३) निर्मल. वल धारण । (४) महावर लगाना । (५) बाल यूथना । (६) माँग में सिन्दूर धारण । (७) माथे पर.

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