पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३५९

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रामचरित मानस । ३०० चौ०-भूप भरत पुनि लिये वोलाई । हय गय स्यन्दन साजहु. जाई । चलहु बैगि रघुबीर-बराता । सुनत पुलक पूरे दोउ मासा ॥१॥ फिर राजा ने भरतजी को बुला लिया और कहा कि जाकर घोड़, हाथी, रथ सजवा. ओ। तुरन्त रधनाथजी की बरात ले कर चलो, यह सुनते ही दोनों भाई मानन्द से परिपूर्ण हो गये ॥२॥ सरत और शत्रुहनजी बाराव में चलने के लिए उत्सुक ही थे कि अकस्मात राजा की आज्ञा से वह कार्य अत्यन्त सुगम हो गया 'समाधि अलंकार है। भरत सकल साहनी बोलाये । मायसु दीन्ह भुदित उठि धाये॥ रचि रुचि जीन तुरग तिन्ह साजे । बरन बरन बर वाजि विराजे ॥२॥ भरतजी ने सब लरदारों को बुलवाया और भाशा दी, वे प्रसन्न हो उठ कर दौड़े। उन्होंने प्रीति-पूर्वक जीन सुधार कर घोड़े को सजाये, भाँति भाँति के अच्छे घोड़े छोभित हो रहे हैं या सुभग सकल सुठि चञ्चल करनी । अय इव जरत घरत पग धरनी ॥ माना जाति न जाहिँ बुखाने । निदरि पवन जनु चहत उड़ाने ॥३॥ सब घोड़े बड़े ही सुन्दर और चञ्चल करनीवाले हैं, जलते हुए लोहे के समान धरती पर पाँव धरते हैं। वे अनेक जाति के हैं, बसाने नहीं जा सकते, ऐसे मालम होते हैं मानों : पवन का अनादर कर उड़ना चाहते हो ॥३॥ तिन्ह सब छयल भये असवारा । भरत सरिस बय राजकुमारा सब सुन्दर सब भूषन-धारी । कर सर चाप तून-कटि-मारी N४ उन पर सव भरतजी के समान अवस्थावाले सजीले राजकुमार सवार एप सब सुन्दर और लभी आभूषण धारण किए, हाथ में धनुप-चाए लिये तथा कमर में भारी तरकस दो०-छरे छबीले छैल सव, सूर सुजान नवीन । जुग पदचर अलवार प्रति, जे असि कलो प्रबीन ॥२८॥ सव शूरवीर, चतुर, नवयुवक, चुने हुए और छबीले छैले हैं। प्रत्येक सवारों के सर दो दो पैदल सिपाही हैं जो तलवार की कला में अच्छे कुशल हैं ॥ २६ ॥ चौ०-चाँधे बिरद बीर रन गाढ़े। निकसि भये पुर वाहिर ठाढ़े ॥ फेरहिँ चतुर तुरग गति नाना । हरपहिसुनि सुनि पनव निसाना ॥१॥ गहरे संग्राम के अन्न शस्त्र धारण किए योद्धा राजकुमार निकल कर नगर के बाहर खड़े हुए। वे चतुर सवार अनेक चाल से घोड़ों को फेरते हैं और ढोल नगारे के शब्द सुन झुन कर हर्षित होते हैं ॥१॥ H बाँधे हैं ।