पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३६०

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । ३०१ रथ सारथिन्ह बिचित्र बनाये। ध्वज पताक मनि भूषन लाये । चँवर चारु किङ्किनि धुनि करहीं। भानु-जान सोमा अपहरहीं ॥२॥ ध्वजा, पताका, रत और आभूषणों को लगा कर सारथियों ने रथों को विलक्षण बनाया। सुन्दर चँवर लगे हैं और घण्टियाँ शब्द करती हैं वे रथ ऐसे शोभायमान मालूम होते हैं मानों सूर्य भगवान के रथ की शोभा को छीन लेते हों ॥२॥ स्यामकरन अगनित हय होते । ते तिन्ह रथन्हि सारथिन्ह जाते। सुन्दर सकल अलंकृत साहे । जिन्हहिँ बिलोकत मुनि मनमोहे ॥३॥ भसंख्यो श्यामकर्ण घोड़े रहे, उन रथों में सारथियों ने उनको जोता । सुन्दर सम्पूर्ण अलंकारों से शोभित जिन्हें देख कर मुनियों के मन मोह जाते हैं ॥३॥ जे जल चलहिँ थलहि की नाई। टाप न बूड़ बेग अधिकाई ॥ अस्त्र सत्र सब साज बनाई। रथी सारथिन्ह लिये बोलाई ॥४॥ जो पानी पर भी भूमि की तरह चलते हैं, उनमें इतना अधिक वेग है कि टाप नहीं इगता। अस्त्र-शस्त्रों से लष समान ठीक कर के सारथियों ने रथ के सवारों को बुला लिया ॥४॥ दो- चढ़ि चढ़ि रथ बाहिर नगर, लागी जुरन बरात । होत सगुन सुन्दर सबहि, जो जेहि कारज जात ॥२६॥ रथों पर चढ़ चढ़ कर नगर के बाहर बरात इकट्ठी होने लगी। जो जिस कार्य के लिए जाते हैं सभी को सुन्दर सगुन होते हैं ॥ २३ ॥ चौ०-कलित करिवरन्हि परी अंबारी। कहि न जाइ जेहि भाँति सवारी॥ चले भत्त-गज घंट बिराजी । मनहुँ सुभग सावन-घन-राजी ॥१॥ हाथियों पर सुन्दर अम्बारिवाँ पड़ी हैं, जिस प्रकार वे सजाई गयी हैं कही नहीं जा सकती। मतवाले हाथी चले उनके घण्टे शोभित हो रहे हैं, ऐसे मालूम होते हैं मानो सावन में सुन्दर मेघ प्रसन्न दुप ( गज'न करते ) हो ॥१॥ पाहन अपर अनेक . विधाना । सिबिका सुभग सुखासन जाना । तिन्ह चढ़ि चले विप्र-घर-बन्दा । जनु तनु धरे सकल-खुति-छन्दा ॥२॥ और अनेक तरह की सुन्दर सवारियाँ 'पालकी, तामजान और विमानों में चढ़ कर उच्चम ब्राह्मण समूह'चले, थे ऐसे मालूम होते हैं मानो सम्पूर्ण वेदों के छन्द शरीर धारण किए हों॥२॥ . 2