पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३६२

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प्रथम सोपान,बालकाण्ड । ३०३ दोउ रथ रुचिर भूप पहिँ आने । नहिँ सारद पहिँ जाहिँ बखाने । राज-समाज एक रथ साजा। दूसर तेज-पुञ्ज अति भ्राजा ॥४॥ दोनों सुन्दर रथ राजा के पास ले आये, वे सरस्वती द्वारा भी नहीं बखाने जा सकते। एक रथ राजसी ठार से सजाया है और दूसरा तेज की राशि अत्यन्त शोभनीय है ॥४॥ दो०-तेहि रथ रुचिर बसिष्ठ कह, हरषि चढ़ाइ नरेस । आपु चढ़े स्यन्दन सुमिरि, हर गुरु गोरि गनेस ॥३०१॥ उस सुन्दर (तेज:पुज) रथ पर राजा ने प्रसन्नता से वशिष्ठजी को चढ़ाया। शिव-पार्वती, गणेश और गुरु का स्मरण कर आप भी रथ पर चढ़े ॥ ३०१॥ चौ०-सहित बसिष्ठ साह नृप कैसे। सुरगुरु सङ्ग पुरन्दर जैसे । करि कुल-रीति बेद-बिधि राऊ । देखि सबहि सब भाँति बनाऊ ॥१॥ वशिष्ठजी के सहित राजा कैसे शोभित हो रहे हैं, जैसे वृहस्पति के साथ इन्द्र शोभाय. मान होते हैं। रोजा कुल की रीति वेद की विधि से कर के और सब को सब तरह से तैयार देख कर ॥१॥ सुमिरि राम गुरु आयसु पाई । चले महीपति सङ्ख बजाई ॥ हरषे बिबुध बिलोकि बराता । बरहिँ सुमन सुमङ्गलदाता ॥२॥ रामचन्द्रजी का स्मरण कर के और गुरु से आशा पा कर राजा शक थजा कर चले। बारात को (पयान करते) देख कर देवता प्रसन्न हुए, वे सुन्दर मङ्गलदायक फूलों की वर्षा करते हैं ॥२॥ यात्रा के समय शह-ध्वनि और पुष्पवृष्टि शुभ-सूचक शकुन हैं। भयउ कोलाहल हय गय गाजे । ब्योम बरात बाजने बोंजे ॥ सुर-नर-नारि सुमङ्गल गाई। सरस राग बाहिँ सहनाई॥३॥ हाथी घोड़ों के गजन का बड़ा हल्ला हुश्रा, आकाश और बरात में बाजे बजते हैं । देवता और मनुष्यों की लियाँ खुन्दर मङ्गल गाती है तथा रसीले रोग से सहनाइयाँ बजती हैं ॥३॥ सभा की प्रति में 'सुर नर नाग' पाठ है। घंट घंटि धुनि बरनि न जाहौँ । सरव करहिँ पायक फहराही । करहिँ बिदूषक कौतुक नाना । हास-कुसल कलगान सुजाना ॥४॥ घण्टे और धरिटयों के शब्द वर्णन नहीं किए जाते हैं, झण्डियाँ फहराती हैं उनमें लगे घुधुरू बोल रहे हैं । भाँड़ लोग नाना तरह के लेल करते हैं. वे हँसी दिल्लगी करने में दक्ष और सुन्दर गाने में चतुर हैं ॥४॥