पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रथम सापान, बालकाण्ड । ३०७ घोड़ों की बाग ढीली कर के संवारों का चलना कहा है। किसी ने धावा मारना और किसी ने पंक्ति जोड़ कर चलने का अर्थ किया है, परन्तु ये सब कल्पित अर्थ हैं । श्रारण्य काण्ड में 'श्राइ गये बगमेल' और 'मदन कीन्ह बगमेल' यह शब्द दो स्थलों में आया है। इसका अर्थ है-"मगची नगवा, बिलकुल समीप में आ जाना, अत्यन्त निकट पहुँचना" विशजन विचार लें, यहाँ धावा मारने या बाग मिलाने से तात्पर्य नहीं है। चौ-बरषि सुमन सुर सुन्दरि गोवहि । मुदित देव दुन्दुभी बजावहिँ ॥ बस्तु सकल राखी नृप आगे। बिनय कीन्ह तिन्ह अति अनुरागे ॥१॥ पुष्प-वर्षा कर के देवांगनाएँ गाती हैं और देवता प्रसन्न हो कर नगारे बजाते हैं। सारी 'वस्तुएँ अगवानियों ने राजा दशरथजी के सामने रख कर बड़े प्रेम से विनती की ॥१॥ . प्रेम समेत राय सब लीन्हा । भइ बकसीस जाचकन्हि दीन्हा । करि पूजा मान्यता बड़ाई । जनवासे कह चले लेवाई ॥२॥ राजा ने प्रीति के साथ सब लिये, वह खैशत होकर मंगनों को देदी। पूजा, प्रतिष्ठा और बड़ाई कर के जनवासे को लिवा ले चले ॥२ २॥ बसन बिचित्र पाँवड़े परहीं। देखि धनद धन-मद परिहरहीं। अति सुन्दर दीन्हेउ जनवासा । जहं सब कह सब आँति सुपासा॥३॥ विलक्षण वस्त्र पाँच के नीचे पड़ते जाते हैं, जिसे देख कर कुवेर धन का गर्व त्याग देते हैं। अत्यन्त सुन्दर जनवास दिया, जहाँ सब को सब तरह का सुबीता है ॥३॥ जानी सिय बरात पुर आई। कछु निज महिमा प्रगटि जनाई। हृदय सुमिरि सब सिद्धि बोलाई । भूप पहुनई करन पठाई ॥१॥ सीताजी ने बरात को नगर में आई जान कर अपनी महिमा कुछ प्रकट कर दिखाई। मन में स्मरण कर के सब सिद्धियों को बुलाया और राजा को मेहमानी करने के लिए भेजा ran दो-सिधि सब सिय आयसु अकनि, गई जहाँ जनवास । लिये सम्पदा सकल सुख, सुरपुर- -भोग-बिलास ॥३०॥ सब सिद्धियाँ सीताजी की आशा सुन कर जहाँ जनवास है वहाँ गई । सम्पूर्ण देव- लोक के भोग-विलास का ऐश्वर्य मुखलिये हुए हैं ॥३०॥ चौ०-निज निज बास बिलोकि बराती। सुर-सुख-सकल सुलभ सब भाँती॥ बिभव-भेद कछु कोउ न जाना । सकल जनक कर करहिं बखाना ॥१॥ परातियों ने अपना अपना निवास (डेरा) देखा कि सब तरह से सम्पूर्ण देवताओं के सुख सहज ही प्राक्ष हैं। इस ऐश्वर्या के भेद को किसी ने कुछ नहीं जाना, सब जनकजी की बड़ाई करते हैं ॥१॥