पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३७२

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। ) . प्रथम सोपान, बालकाण्ड । पठइ दीन्हि नारद सन सोई। गनी जनक के ग़नकन्ह जाई । सुनी सकल लोगन्ह यह बाता। कहहिँ जोतिषी अपर बिधाता ॥४॥ वही ( लग्नपत्रिका) नारदजी के हाथ भेज दी, जिसको जनकजी के ज्योतिषियों ने पहले ही विचार रक्खा था। यह बात सब लोगों ने सुनी, वे कहते हैं कि ज्योतिषी दूसरे ग्रला ॥४॥ दो०-धेनुधूरि-बेला बिमल, सकल सुमङ्गल-मूल । बिप्रन्ह कहेउ बिदेह सन, जानि सगुन अनुकूल ॥३१२॥ गोधूली का समय शुद्ध सम्पूण सुन्दर मंगलों का मूल है, अच्छी साहत जान कर ब्राह्मणों ने राजा जनक से कहा ॥ ३१२ ॥ चौ०-उपरोहितहि कहेउ नरनोहा । अब बिलम्ब कर कारन काहा ॥ सतानन्द तब सचिव बोलाये। मङ्गल सकल साजि सब ल्याये ॥१॥ तब राजा जनकजी ने पुरोहित से कहा कि अब देरी करने का पया कारण है ? फिर शतानन्दजी ने मन्त्रियों को बुलाया, वे सम्पूर्ण मङ्गल का लब सामान सजा कर ले आये ॥१॥ सङ्घ निसान पनव बहु बाजे । मङ्गल-कलस सगुन सुभ साजे । सुभग सुआसिनि गावहिं गीता । करहि बेद धुनि विप्र पुनीता ॥२॥ शक, नगारा, ढोल, आदि बहुत से बाजे बजे, मंगल कलश और कल्याणमय शकुनों को सजवाये । सुन्दर मुहागिनो स्त्रियां मंगल गीत गाती हैं और ब्राह्मण लोग पवित्र वेद- अवनि करते हैं ॥२॥ लेन चले सादर एहि माँती। गये जहाँ जनवास बराती ॥ कोसलपति कर देखि समाजू । अति लघु लाग तिन्हहिं सुरराजू ॥३॥ इस तरह श्रादर के साथ लेने चले, जनवास में जहाँ बराती हैं वहाँ गये । अयोध्यानरेश के समाज को देख कर उन्हें इन्द्र बहुत छोटा मालूम होने लगा ॥३॥ भयउ समय अब धारिय पोऊ । यह सुनि परा निसानहि घाऊ.॥ गुरुहि पूछि करि कुल बिधि राजा। चले सङ्ग मुनि साधु समाजा nea अभ्यर्थकों ने महाराज दशरथजी से निवेदन किया-महाराज ! अब समय आ गया पदार्पण कीजिए, यह सुन कर डङ्क पर चोट पड़ी । गुरु से पूछ कर राजा कुल की रीति कर के मुनि और साधु-समाज के साथ चले ॥४॥