पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३७४

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । एहि विधि सम्भु सुरन्ह समुझावा । पुनि आगे बर-बसह चलावा । देवन्ह . देखे दसरथ जातो । महा-भाद-मन पुलकित गाता ॥२॥ इस प्रकार शिवजी ने देवताओं को समझाया, फिर श्रेष्ठ नन्दीश्वर को आगे चलाया। देवताओं ने देखा कि दशरथजी मन में बड़े प्रसश और पुलकित शरीर से चले जाते हैं ॥२॥ साधु-समाज सङ्ग सहिदेवा । जलु तनु धरे करहि सेवा साहत साथ सुभग सुत चारी। जनु अपबरग सकल तनु- -धारी ॥३॥ सग में ब्राह्मण और सज्जन-मण्डली ऐसा मालूम होती है, मानों देवता शरीर धर कर सेवा करते हो । सुन्दर चारों पुत्र साथ में शोभित हो रहे हैं, वे ऐसे जान पड़ते हैं मानों सम्पूर्ण मोक्ष ( सायुज्य, मीप्य, सारूप्य, सालोक्य) शरीर धर कर शोभित हो ॥३॥ मरकत कनक बरन तनु जोरी। देखि सुरन्ह भइ प्रीति न थोरी ॥ पुनि रामहि बिलोकि हिय हरषे । नृपहि सराहि सुमन तिन्ह बरषे ॥४॥ श्याममणि और सुवर्ण रजके शरीर की जोड़ी देख कर देवताओं को थोड़ी प्रीति नहीं अर्थात् घड़ी प्रीति उत्पश हुई। फिर रामचन्द्रजी को देख कर हदय में हर्षित हुए और राजा की प्रशंसा कर के उन्हों ने फूल बरसाया ॥४॥ दो०.-राम रूप नख-सिख-सुभग, बारहि बार निहारि । पुलक गात लोचन सजल, उमा समेत पुरारि ॥३१५॥ रामचन्द्रजी के सुन्दर रूप को नख से चोटी पर्यन्त बार बार देख पार्वतीजी के सहित शिवजी का शरीर पुलकित और आँखें जल से परिपूर्ण हो गई हैं ॥३१५॥ चौ०-केकि-कंठ-दुति स्योमल अङ्गा । तड़ित बिनिन्दक बसन सुरङ्गा ॥ व्याह बिभूषन बिबिध बनाये । मङ्गलमय सब भाँति सुहाये ॥१॥ मुरैले के गले की कान्ति के समान श्यामल अङ्ग और सुन्दर पीले रक्ष वन विजली के अत्यन्त निरादर करनेवाले हैं । विवाह के आभूषण महल के रूप सब तरह सुहावने अनेक प्रकार के सजे हैं॥॥ सरद-बिमल-विधु बदन सुहावन । नयन नवल-राजीव ल जावन । सकल अलौकिक सुन्दरताई। कहि न जाइ भनहो मन भाई ॥२॥ शाकाल के निर्मल चन्द्रमा के समान सुहावना मुख और नवीन कमल को लज्जित करने- घाले नेत्र हैं। सारी सुन्दरता लोकोत्तर है, मन ही मन भाती है, वह कही नहीं जाती ॥२॥ बन्धु मनोहर सेहिहि सङ्गा । जोत नचावन चपल राजकुँअर बर बाजि देखावहिं । बंस-प्रसंसक बिग्द सुनाव ॥३॥ साथ में चावल घोड़ों को नवाते जाते हुए मनोहर बन्धु स्रोह रहे हैं। राजकुमार घोड़े की शुन्दर चाल दिखाते हैं और मागध वन्दीजन नामवरी सनात हैं ॥३॥