पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३७७

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३१ रामचरित मानसी हैं। इस प्रकार बशत को प्राती हुई जान कर बहुत से बाजे बजने लगे । सुहागिनी स्त्रियों को बुला कर रानी परछन के लिए महल साज सजने लगीं ॥२२॥ दो-सजि आरती अनेक विधि, मङ्गल सकल सवारि । चली मुदित परिछन करन, गज-गामिनि बर नारि ॥३१॥ आरती साज कर अनेक प्रकार के सम्पूर्ण मङ्गल साज सजा कर हाथी के समान चाल- वाली सुन्दर स्त्रियाँ प्रसन्नता ले परछन करने चलों ॥ ३१७ ॥ चौ०-विधु-बदनी सबसब मुगलोचनि सबनिजतनुछबि रतिमदमोचनि । पहिरे बरन बरन बर चीरा । सकल विभूषन सजे सरीरा ॥१॥ सब चन्द्रमुखी, सब मृग के समान नेत्रोंवाली और सब अपने शरीर की छवि के आगे रनि के गर्व को छोड़ानेवाली हैं। रङ्ग रख की बढ़िया साड़ी पहिने हैं और सम्पूर्ण श्राभूषण श्रहों में सजे हैं ॥१॥ सकल सुमङ्गल अङ्ग बनाये । करहि गान कलकंठ लजाये ॥ कङ्कन किदिनि नूपुर बाजहिँ । चाल बिलोकि काम गज लाजहिँ ॥२॥ सम्पूर्ण श्रेष्ठ मझलों से अङ्ग सजाये कोयल को लजानेवाली मधुर वाणी से गान करती हैं। उनके ककने, करधनी और मीर बजते हैं, चाल देख कर कामदेव रूपी हाथी खाजा जाते हैं ॥२॥ यतवाले हाथी की चाल ये ही प्रशंसनीय होती है, कामदेव यधपि उत्कर्ष का हेतु नहीं है, तो भी उसकी कल्पना करना 'प्रौढोक्ति अलंकार' है। बाजहि बाजन विविध प्रकारा । नम अरु नगर सुमङ्गल चारा। सची सारदा रमा भवानी । जे सुरतिय सुचि सहज सयांनी ॥३॥ अनेक प्रकार के बाजे यजने हैं, आकाश और नगर में सुन्दर मङ्गलाचार हो रहा है। इन्द्राणी, सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती और जो सहज पवित्र सथानी देवाङ्गनाएँ हैं ॥३॥ कपट नारि बर बेष बनाई । मिली सफल रनिवासहि जाई ॥ करहिँ गान कल मङ्गल बानी । हरष बिबस सम काहु न जानी ॥४॥ कपट से सुनर खियों के रूप बना कर सब जाकर रनिवास में मिल गई। मनोहर पाणी से मङ्गल गान करती हैं, सारा रनिवास अत्यन्त हर्ष के आधीन है, किसी ने उन्हें नहीं पहचाना 0 1 .