पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३७८

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॥ प्रथम सोपान, मालकाण्ड । हरिगीतिका-बुन्द। को जान केहि आनन्द-बस सब, ब्रह्म-घर परिछन चली। कल गान मधुर-निसान बरपहि, सुमन सुर सोभा भलौं आनन्द-कन्द बिलोकि दूलह, सकल हिय हरषित भई । अम्भोज-अम्बक अम्बु उमगि सुअङ्ग पुलकावलि छई ॥२३॥ 'कौन किसको जानता है ? सब श्रानन्द के बस में हुई परब्रह्म दुलह के परछन के लिये जा रही है । मनोहर गान करती हैं, मधुर ध्वनि से नगाड़े बजते हैं, देवता फूल बरसाते हैं, अच्छी शोभा हो रही है। मानन्ध के मूल वर को देख कर सारी स्त्रियाँ हृदय में हर्षित हुई। उनके कमल रूपी नेत्रों में जल उमड़ कर सुन्दर अङ्गो में पुलकावली छा गई ॥२॥ हर्ष ले स्त्रियों को अश्रु रोमाञ्च का होना सात्विक अनुभाव है। दो०-जा सुख भा सिय मातु मन, देखि राम बर बेष । सो न सकहिं कहि कलप-सत, सहस-सारदा-सेष ॥३१८॥ रामचन्द्रजी के उत्तम वेश को देख कर सीताजी की माता (सुनयना) के मन में जो सुख हुआ उसको सहस्रो सरस्वती और शेष सैकड़ों कल्प तक नहीं कह सकते ॥३१॥ चौ-नयन नीर हठि मङ्गल जानी। परिछन करहिं मुदित मन रानी। बेद बिदित अरु कुल आचारू । कीन्ह भली बिधि सब व्यवहारू ॥१॥ माल का समय जान कर नेत्रों का जल हठ से रोक कर प्रसन्न मन से रानी परछन करती हैं। वेदोक और कुल की रीति के सस व्यवहार अच्छी तरह से किये ॥१॥ पञ्च-सबद धुनि-मङ्गल-गाना । पट पाँवड़े परहिँ बिधि नाना । करि आरती अरघ तिन्ह दीन्हा । राम गवन मंडप तब कीन्हा ॥२॥ लोगों के शब्द और मङ्गल गान की ध्वनि हो रही है, नाना प्रकार के वस्त्रों के पाँवड़े पड़ते हैं। आरती कर के उन्होंने अर्घ्य दिया, तब रामचन्द्रजी ने मण्डप के नीचे गमन किया ॥२॥ मण्डप के नीचे मुख्यार्थ बाध हो कर गमन कथन में 'कदि लक्षणा' है। पञ्च शब्द जनसमुदायवाची है, जिससे समूह मनुष्यों के शब्द होने का वर्णन है। कोई कोई 'जय धुनि बन्दी वेद धुनि, मङ्गल-गान मिसान' को पञ्चशब्द कहते हैं । अयं पूजा में देने योग्य वस्तु भेट फरना, जैसे-जल, फल, फूल हत्यादि । दसरथ सहित समाज बिराजे । विभव बिलोकि लोकपति लाजे॥ समय समय सुर बरपहिं फूला । सान्ति पढ़हिँ महिसुर अनुकूला ॥३॥ दशरथजी मण्डली हित बिराजमान हैं, उनके ऐश्वर्यको देख कर लोकपाल लन्जित हो जाते हैं। समय समय पर पता फूल बरसाते हैं, प्रोक्षण कल्याणकारी शान्ति-पाठ करते हैं ॥३॥