पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३८२

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कुल रीति प्रथम सापाने, बालकारा । रामचन्द्रजी के मुख के प्रकाशत्व गुण से उसे चन्द्रमा ठहराना गौणी सारोपो लक्षणा है। चौ०-समउ बिलौकि बलिष्ट बोलाये। सादर सतानन्द सुनि आये। बेगि कुँअरि अब आनहु जाई। चले मुदित मन आयसु पाई ॥१॥ समय देख कर वशिष्ठजी ने शतानन्द को बुलाया, वे सुन कर श्राद के साथ आये। वशिष्ठजी ने कहा-अब जा कर जल्दी कुवरि को ले भाइये, माना पाकर प्रसा मन से चले ॥१॥ रानी सुनि उपरोहित बानी । प्रमुदित सखिन्ह समेत सयानी॥ विप्रबधू कुलबुद्ध बोलाई । करि समङ्गल गाई ॥२॥ बुद्धिमती रानी पुरोहित की वाणी सुन कर सखियों सहित प्रसन्न हुई। ब्राहाणों की स्त्रियाँ और फुटुम्य की वृद्धा को बुला कर कुलाचार फर के सुन्दर भंगल गाती हैं ॥२॥ नारि बेष जे सुरबर-बामा। सकल सुभाय सुन्दरी स्यामा । तिन्हहिँ देखि सुख पावहिँ नारी । बिनु पहिचानि प्रान तैं प्यारी ॥३॥ जो देवताओं की श्रेष्ठ स्त्रियाँ प्राकृत स्त्री के वेश में हैं, सम्पूर्ण स्वभाव से सुन्दरी और सोलह वर्ष की अवस्थावाती हैं। उन्हें देख कर रनिवास की ललनाएँ प्रसन्न हो रही हैं और बिना पहचान के ही वे प्राण से बढ़ कर प्यारी लगती हैं ॥३॥ बार बार सनभानहिँ रानी । उमा-रमा-सारद-सम सीय सँवारि · समाज बनाई । मुदित मंडपहि चली लेवाई ॥४॥ उन्हें पार्वती, लक्ष्मी और सरखती के समान जान कर रानी बार बार सम्मान करती है ।धे देवगनाएँ सीताजी को वस्त्राभूषण से सज कर और अपनी मण्डली बना कर प्रसन्न- तासे मण्डप में लिवा चली ॥४॥ हरिगीतिका- 'छन्द चलि ल्याइ सीतहि सखी सादर, सजि सुमङ्गल आमिनी । नवसप्त साजे सुन्दरी सब, मत्त-कुञ्जर-गामिनी ॥ कल गान सुनि मुनि ध्यान त्यागह, काम-कोकिल लाजहीं । मजीर नूपुर कलित कङ्कन, ताल-गति बर बाजहीं ॥२॥ भादर के साथ सखियाँ सीताजी को लिवा चली, उन्होंने सुन्दर मङ्गलीफ साजो से अपने को सजाया है। सभी सुन्दरियाँ ' सोलही झार किये मतवाले हाथी के समान गमन फरनेवाली हैं। उनके मनोहर गान को सुन कर मुनि लोग ध्यान छोड़ देते और कामदेव के जानी ॥