पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३८४

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । ३२५ मधुपर्क मङ्गल-द्रव्य जो जेहि, समय मुनि मन महँ. चहैं । भरे कनक-कोपर-कलस सो, सब लिये परिचारक रहैं ॥२८॥ आचार कर के गुरुओं ने गौरि गणेश का पूजन करवाया और प्रसन्नता से ब्राह्मण पाँव पुजवाते हैं। देवता प्रकट हो कर पूजा लेते हैं और अत्यन्त सुख को प्राप्त हो आशीर्वाद देते हैं । मधुपर्क और अन्यान्य मांगलीक वस्तु जिसको मुनि जिस समय मन में चाहते हैं उस समय उसको सुवर्ण के परात और कलशों में भरे हुए सेवक लोग लिये उपस्थित रहते हैं ॥२८॥ आवश्यकतानुसार मांगतीक वस्तुओं की वशिष्ठजी और शतानन्दजी के मन में चाहना हुई, बिना कहे आशय तार कर लिये हुए सेवको को उपस्थित रहना 'सूक्ष्म अलंकार' है। घी और मधु एक एक भाग तथा दही तीन भाग मिलाने से मधुपर्क कहलाता है। यथा-"आज्यमेकंपलं प्राह दधिनिपलमेवच । मधुना पलमेकन्तु मधुपर्क स उच्यते । कुलरीति प्रीति समेत रबि कहि,-देत सब सोदर किये। एहि भाँति-देव पुजाइ सीतहि, सुभग सिंहासन दिये ॥ सिय-राम अवलोकनि परसपर, प्रेम काहु न लखि परै ।। मन-बुद्धि-बर-बानी अगोचर, प्रगट कबि कैसे करै ॥२९॥ सूर्य भगवान् स्वयम् कुल की रीति कह देते हैं, उसके अनुसार सब आवार आदर से किये जाते हैं । इस प्रकार देवताओ ने पुजायो, और सीताजी को सुन्दर सिंहासन दिया गया। सीता और रामचन्द्रजी का आपस में निहारना और एक पर दूसरे की प्रीति किसी के लखाव में नहीं आती। वह मन, बुद्धि और उत्तम वाणी से परे है उसको कवि कैसे प्रकट कर सकता है? ॥२॥ रामचन्द्रजी और जानकीजी कापरस्पर अवलोकन मानसिक अनुभाव है। प्रेम से उत्पन्न मनोविकार किसी को प्रकट न होने देना, चतुराई से उसको छिपाना 'प्रवाहित्य सञ्चारीमाव' है.गुरुजनों की लज्जा 'ग्रीड़ा सहारीभाव है। दो-होम समय तनु धरि अनल, अति सुख आहुति लेहि । विप्र बेष धरि बेद सब, कहि बिबाह विधि देहिँ ॥३२३॥ हवन के समय शरीर धारण कर के अग्नि अत्यन्त प्रसन्नता से आहुति लेते हैं । ब्राह्मण का रूप धना कर सब वेद विवाह की विधि कह देते हैं ॥ ३२३ ॥ प्राह्मण वेदमन्त्र के अनुसार विवाह कराते हैं, पर यहाँ वेद ही ब्राह्मण वेशधारी हो कर विवाह का विधान कहते हैं । ब्राह्मण की क्रिया वेदों में मान रहना 'परिकराकर अलंकार है। चौ०-जनक-पाटमहिषी जग जानी। सीय मातु किमि जाइ बखानी ॥ सुजस सुकृत सुख सुन्दरताई । सब समेटि विधि रची बनाई ॥१॥ जानकजी की पटरानी को संसार जानता है, सीताजी की माता का बखान कैसे किया जा सकता है ? सुयश, पुण्य, सुख और सुन्दरता सब बटोर कर 'मानों ब्रह्मा ने इन्हें रच कर (दिलदेही के साथ) बनाया है ॥१॥ 1