पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३८९

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३३० रामचरित-मानस । तिनाम है जो सुन्दर नेत्र और अच्छे मुखवाली. सब गुणों की खान, कप तथा शोल में उजागर हैं, उन्हें राजा ने शत्रुहन को ब्याह दिया ॥३॥ अनुरूप बर दुलहिन परसपर, लखि सकुचि हिय हरषही। सब मुदित सुन्दरता सराहहि, सुमन सुर-गन बरषही । सुन्दरी सुन्दर बरन्ह सह सब, एक मंडप ‘राजहीं । जनु जीव उर चारिउ अवस्था, विभुन्ह सहित बिराजहीं ॥३०॥ दूलह दुलहिन आपस में अपने अपने अनुसार जोड़ी देख और लजा कर मन में प्रसन्न होते हैं। सब लोग आनन्दित हो सुन्दरता की बड़ाई करते हैं और देवता वृन्द फूल बरसाते हैं। सभी सुन्दरियाँ सुन्दर वरों के सहित एक ही मण्डप में शोभित हैं । वे ऐसी मालूम होती हैं मानी जीव के हृदय में चारो अवस्थाएं अपने स्वामियों के सहित विराजती हो ॥३७॥ जीव और वशरथजी, उर और मण्डप, जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति, तुरीया ये चार प्रव. स्थाएं और जानकीजी, उर्मिला, माण्डवी, श्रुतिकीति चारों बधुएँ । ब्रह्म, विश्व, प्रार, तेजस ये चारों विभु और रामचन्द्र, लक्ष्मण, भरत, शत्रुहन चारों भाई क्रमशः उपमान उपमे. य हैं । सिद्ध होने पर जीवों के हदय में विभुमो सहित चारों अवस्थाए शोभित होती ही हैं । यह 'उक्तविषया वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार' है। दो-मुदित अवधपति सकल-सुत, बधुन्ह समेत निहारि। जानु पायउ महिपाल-मनि, नियन्ह सहित फल चारि ॥३२॥ अयोध्यानरेश सब पुत्रों को पताओं के सहित देख कर प्रसन्न हुए । राजाओं के शिरो. मणि (दशरथजी) ऐसे मालूम होते हैं माने क्रियाओं समेत चारों फल पा गये है। १३२५॥ भक्ति,श्रद्धा, तपस्या, सेघा ये चारों क्रियाएँ और जानकीजी, उर्मिला, माण्डवी, श्रुति. वीति, मोक्ष, अर्थ, काम, धर्म ये चारों फल और रामचन्द्र, लक्ष्मण, भरत, शत्रुहन चारों भाई क्रमशः परस्पर उपमान उपमेय हैं। क्रियाओं द्वारा फलों की प्राप्ति होती ही है। यह 'उक्तविषया वस्त्त्मेक्षा अलंकार है। चौ०-जसिरघुबीर ब्याह बिधि बरनी। सकल कँअर ब्याहे तेहि करनी। कहि न जाइ कछु दाइज भूरी । रहा कनक-मनि मंडप पूरी ॥१॥ जैसी विधि रघुनाथजी के विवाह की वर्णन हुई है, सम्पूर्ण राजकुमारों का ब्याह उसी कम से हुआ । दहेज की अधिकता कुछ कही नहीं जाती है, सुवर्ण और रत्नों से मण्डप भर रहा है ॥१॥ कम्बल बसन बिचित्र पटोरे । भाँति भाँति बहु मोल न धोरे ॥ गज रथ तुरग दास अरु दासी । धेनु अलंकृत कामदुहा सो ४२॥ कम्बल वस्त्र और विलक्षण रेशमी कपड़े तरह तरह के जिनका बहुत मूल्य है, थोड़े