पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३९

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के लिये पर्याप्त दूध ले आया। उस दूध का गोस्वामीजी ने खोया बना कर भोग लगाया और रात्रि में वही विश्राम किया। मैंगरू के सच्चे सत्कार से और सन्त-महात्माओं में उसकी प्रीति देम गोसाँईजी पहुत प्रसन्न हुए । जब सबेरे वहाँ से प्रस्थान करने लगे, तब मंगरू ने बड़ी नम्रता से दउयत किया और सामने हाथ जोड़ कर खड़ा रहा। गोस्वामीजी ने कहा-या चाहते हो ? उसने कहा-महाराज श्राप के आशीर्वाद से सय परिपूर्ण है, किन्तु कोई सन्तान नहीं है । गोसाईजी ने कहा कि इस गाँव के सब मनुष्य चोरी ठगी आदि घोर अत्याचार करते हैं। यदि तुम यह प्रतिना करो कि तुम और तुम्हारे कुटुम्बी चोरो ठगहारी न करेंगे तो शीघ्र ही तुम्हें सन्तान का सुख प्राप्त होगा। मंगर ने वैसी ही प्रतिज्ञा की और कुछ ही दिन बाद उसके पुत्र हुना। सुना जाता है कि बलिया और शाहाबाद जिले में मंगल के वंशजों को अतिथि-सेवा अपतक प्रसिद्ध है। यद्यपि यहाँ के अहीर चोरी ठगहारी करने में अब भी प्रख्यात हैं, किन्तु मैंगरू के वंशज इस दोष से सर्वथा मुक्त कहे जाते हैं। वहाँ से चल कर गोसाँईजी वे जापतीत पाये। गोविन्द मिश्र और रघुनाथसिंह क्षत्रिय ने उन्हें बड़े सत्कार से ठहराया । वेलापतौत का नाम बदल कर गोस्वामीजी ने रघुनाथपुर रख दिया जो अब तक इसी नाम से प्रसिद्ध है। वहाँ ले चल कर कुछ दिन के बाद वे जगन्नाथपुरी के समीप जा पहुंचे। नौल चक्र का दर्शन होते ही वहीं बैठ गये। कहते हैं कि उनको यहीं जगदीश भगवान का दर्शन हुआ था! वह स्थान अब तक 'तुलसीचैरिए के नाम से प्रसिद्ध है और जगन्नाथजी के दर्श नार्थ जानेवाले यात्री इस स्थान में दर्शन के लिये पधारते हैं। कुछ दिन बाद गोस्वामीजी फिर काशी लौट आये। भिन्न भिन्न किम्बदन्तियाँ। यो तो महात्मा-पुरुष विलक्षण होते ही हैं और उनके अनुयायी भकगण उनके चरित्रों की विलक्षणता को इतनी चढ़ा बढ़ा कर प्रचार करते हैं कि उसका निर्णय करना अत्यन्त दुर्गम हो जाता है । बहुत सम्भव है कि इन विम्बदन्तियों में भी कुछ ऐसी बाते हो, रजो सुनने में आती हैं उनमें कुछ महत्व-सूचक बातों का हम उल्लेख करते हैं (१)-कहा जाता है कि एक बार चित्रकूट जाते समय रास्ते में किसी राजा की प्रार्थना से प्रसन्न हो उसकी कन्या को अपने अशीर्वाद से गोलाई जी ने पुत्र कर दिया था। "रामनाम मनि विषय ब्याल के । मेटत कठिन कुल माल के इस चौपाई को पढ़ कर जल विड़ाते ही वह कन्या पुत्र रूप में परिवर्तित हो गयी। (२)-सारन जिला में एक मैरिवा ग्राम है। वहाँ हरीराम ब्रह्म का स्थान है। कनाशाही विसेने के उपदव से तंग आकर हरीराम ने अात्महत्या कर डालो और ब्रह्म हुए। हरीराम के जनेऊ में गोसाई जी भी उपस्थित थे, ऐला कहा जाता है । (३'-कहते हैं रामचरिममानस के बन जाने पर काशी के कुछ पंडितों ने उसे भापा-काम्य कह कर तिरस्कार किया। पक ने जाकर गोसाईजो से कहा कि श्राप तो संस्कृत के विद्वान और कवि हैं, फिर गवारी भाषा में ग्रन्थ क्यों बनाया ? इस पर गोसाँईजी ने यह दोहा कहा- मनि-भाजन विष पारई, पूरन अमी निहारि । का छाढ़िय का संग्रहिय, कहहु विवेक विचारि ॥ अर्थात् मणि के पात्र में विष भरा हो और मट्टी की परई में अमृत देखने में आये तो शान से विचार कर कहिये कि किसे त्यागना चाहिये और किसको ग्रहण करना चाहिये । उस पंडित ने ।