पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३९२

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। प्रथम सोपान, बालकाण्ड । चौल-स्याम सरीर सुभाय सुहावन । सभा कोटि मनोज लजावन ॥ जावक-जुत पद-कमल सुहाये। मुनि-मन-मधुप रहत जिन्ह छाये ॥१॥ श्याम शरीर स्वाभाविक सुहावना है, करोड़ों कामदेवों को लजानेवाली शोभा है। महा- वर युक्त सुन्दर चरन-कमल हैं जिनमें मुनियों के मन रूपी भ्रमर छाये रहते हैं ॥१॥ पीत पुनीत मनोहर धोती। हरत बाल-रबि दामिनि-जोती ॥ कल किङ्किनि कटिसूत्र मनोहर । बाहु बिसाल बिभूषन सुन्दर ॥२॥ पीले रम की पवित्र मनोहर धेोती है, वह बाल-सूर्य और बिजली को कान्ति को हरने. वाली है। शोभन नूपुर मनोहर करधनी और विशोल वाहुओं में सुन्दर आभूषण पहने हैं ॥२॥ पीत जनेउं 'महाछबि देई। कर-मुद्रिका चोरि चित लेई । सोहत ब्याह साज सब साजे । उर आयत उरु भूषन राजे ॥३॥ पीला जनेऊ बड़ी शोभा दे रहा है, हाथ की मुंदरी चित्तको चुरा लेती है। विवाह का सव साज सज शोभित हो रहे हैं, विशाल वक्षस्थल पर बमुत से गहने विराजमान हैं ॥शा पियर • उपरना काँखासोती । दुहुँ आँचरन्हि लगे मनि मोती। नयन-कमल कल कुडल काना । बदन सकल-सौन्दर्ज-निधाना ॥४॥ पीले दुपट्ट की कावासोती (जनेऊ की तरह कन्धे पर दुपट्टा डालने का ढङ्ग) डाले हैं, उसके दोनों आँचरों में मणि और मोती लगे हैं । कमल के समान नेत्र, कानों में सुन्दर बालियों हैं और मुख सारी सुन्दरता का स्थान है ॥४॥ सुन्दर भृकुटि मनोहर नासा । भाल तिलक रुचिरता निवासा । साहत मैार मनोहर माथे। मङ्गलमय मुकता-मनि गाथे ॥५॥ भौहे सुन्दर और नाक मनोहर है, माथे पर तिलक सुन्दरता का स्थान है। मस्तक पर मनोहर मौर मोती और रनों से गुथा हुश्रा मङ्गल रूप शोभित है ॥५॥ हरिगीतिका-छन्द । गाथे महामनि मौर मञ्जुल, अंङ्ग सब चित चारहीं। पुर-नारि सुर-सुन्दरी बरहि बिलोकि सब उन तोरहीं । मनि-बसन-भूषन वारि आरति, करहिं मङ्गल गावहीं। सुर सुमन बरिसहि सूत मागध,-बन्दि सुजस सुनावहीं ॥१२॥ महा मणियों से गुथा हुमा सुन्दर मौर और सब श्रङ्ग चित्त को चुरा लेते हैं। नगर की स्त्रियाँ और देवताओं की सुन्दरियाँ दुलह को देख कर सब तिनका तोड़ती हैं । रत्न, वस्त्र