पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३९६

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प्रथम सोपान,बालकाण्ड । देखि कुँअर बर बधुन्ह समेता। किमि कहि जात माद मन जेता । प्रातक्रिया करि गे गुरु पाही । महा प्रमोद प्रेम मन माहीं ॥२॥ कुँवरों को श्रेष्ठ बधुओं सहित देख कर जितना आनन्द मन में हुआ, वह किस तरह कहा जा सकता है ? प्रांतः क्रिया कर के हृदय में प्रेम और अतिशय प्रसशता से गुरु वशिष्ठ जी के पास गये ॥२॥ करि प्रनाम पूजा कर जोरी । बोले गिरा अमिय जनु बोरी ॥ तुम्हरी कृपा सुनहु मुनिराजा । भयउँ आजु मैं पूरनकाजा ॥३॥ प्रणाम करके सत्कार किया और हाथ जोड़ कर बोले, वह वाणी ऐसी मालूम होती है मानों अमृत में डुबोई हो। हे मुनिराज! सुनिए, आप की कृपा से आज मैं पूर्णकाम (सफल मनोरथ )हुआ हूँ॥३॥ अब सब बिन बोलाइ गोसाँई। देहु धेनु सब माँति बनाई ॥ सुनि गुरु करि महिपाल बड़ाई। पुनि पठये मुनि बन्द बोलाई ॥४॥ हे स्वामिन् ! अब सब ब्राह्मणों को बुला कर और सब तरह से सजा कर गैया दीजिए। यह सुन कर गुरुजी राजा की प्रशंसा कर के फिर मुनि गयों को बुलवा भेजा ॥४॥ दो-बामदेव . अरु देवरिषि, बालमीक जाबालि। आये मुनिबर निकर तब, कैासिकादि तप-सालि ॥३३०॥ तब वामदेव और नारद, पाल्मीकि, याज्ञवल्क्य, विश्वामित्र आदि तपोनिधि वृन्द के चन्द मुनिवर माये ॥ ३३० ॥ चौ०-दंड प्रनाम सबहि नूप कीन्हे । पूजि सप्रेम बरासन दीन्हे ॥ चारि लच्छ बर-धेनु. मँगाई । कामसुरभि सम सील सुहाई ॥१॥ राजा ने सब को दण्डप्रणाम किया और प्रेम से पूजन कर के उत्तम आसन दिया। चार लाख श्रेष्ठ गैया में गवायी जो कामधेनु के समान अच्छे स्वभाववाली सुहावनी थीं ॥१॥ सब बिधि सकल अलंकृत कीन्ही। मुदित महिप महिदेवन्ह दीन्ही । करत बिनय बहु बिधि नरनाहू । लहउँ आजु जग जीवन-लाहू ॥२॥ सब प्रकार सम्पूर्ण अलंकारों से विभूषित कर राजा ने प्रसन्न हो ब्रह्मणों को दी। बहुत तरह से नरनाथ बिनती करते हैं कि आज मैं ने संसार में जीने का लाभ पाया | अतिथि सत्कार में अपने सौभाग्य की प्रशंसा करने से आगत पुरुष की षड़ाई प्रकट होती है।