पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/४०

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( १५ ) कहा यह कैसे १ गोसाँईजी ने उत्तर दिया कि निस्सन्देह मेरी भाषा गवारी है, पर संस्कृत के नायिकाभेद वर्णन से अच्छी हो है। इस उत्तर से उस अहंकारी पंडित को सन्तोष नहीं हुआ। उसका दुराग्रह देख गोसाँईजी ने 'ऐलि पीर विहसि तेहि गोई यह चौपाई का चरण लिख कर दिया और कहा कि श्राप या दूसरे विवान इसका दूसरा चरण ठीक लिख दें तो मैं अपनी कविता को बेकाम की मान लूँगा। बहुनों ने पूति की; पर जब गोसाँई जी ने 'चौर नारि मिमि प्रगट नरोई' लिख कर अर्द्धा मी पूरी कर दो तप सब को पूर्तियों फीकी पड़ गयों और वे सब लज्जित हो गये। (१)-एक बार गोसाँईजी जनकपुर गये थे। वहाँ के ब्राह्मणों को श्रीरामचन्द्रजी के समय सेकिहा जाता है वारदगांव माफी मिले थे। पटने के सूत्रकार ने उन गाँवों को छीन लिया। तुलसी. दासजी ने ब्राह्मणों की प्रार्थना र हनूमान जी से विनती की, और पवनकुमार के अनुग्रह से उन ब्राह्मणों के पट्टे लौटा दिये। (५)--वज में महात्मा सूरदास से इनकी भेट हुई थी। (६)-स्वामी दरियानन्द और मलूकदास से भी साक्षात्कार हुआ था। (७)-ओड़छे के कोशवदाल कवि को इन्होंने प्रेतयोनि से मुक्त किया था । (2) कहा जाता है कि कविगत इनसे मिलने के लिये काशी श्राये थे। (8)-बादशाह जहाँगीर एक बार इन्हें रोग प्रस्त सुन कर मिलने के लिये काशी आया था और उस समय रुग्नावस्था का चित्र अपने मुसब्बरों से तैयार कराया था। (१०)-अयोध्या का रहनेवाला एक भंगी काशी आया था। उसको अवधवासी जान कर गोस्वामीजी ने प्रेम-विह्वल हो उसका बड़ा सम्मान कियो । (११)-प्रयाग के मुरारिदेवजी से एक वार गोसाँईजी मिले थे। (१२) सण्डीले के स्वामी नन्दलालजी ने एक बार चित्रकूट में आकर गोस्वामीजी से मिले थे और उन्होंने अपने हाथ का लिखा उन्हें रामकवच दिया था। (१३)-एकबार गोस्वामीजी की बाहुओं में पातव्याधि को भीषण पीड़ा उत्पन्न हुई । जब वह किसी भी उपाय से शान्त नहीं हुई तब उन्होंने ४४ पधों का हनुमानवाहक नामक ग्रन्थ बनाकर हनूमानजी की स्तुति की थी। उससे वह पीड़ा दूर हो गयी। गोस्वामीजी के स्नेही और मित्र । काशी के खत्री टोडरमल, पंडित गंगाराम जोशी, खानखाना, महाराजा मानसिंह, मधु. खुदन सरस्वती और नाभावालजी इनसे स्नेही और मित्र थे। अष्टछाप के प्रसिद्ध कवि नन्ददास को बैजनाथदास ने इनका गुरुभाई लिबा है, परन्तु इसका कोई ठीक प्रमाण नहीं मिलता। वे तुलसी. दास सनाढ्य ब्राह्मण थे जैसा कि नन्ददास के जीवनचरित्र से सष्ट होता है । टोडरमल काशी के एक .बड़े जमीदार थे, वे राजा को पदवी से प्रतिष्ठित थे। टोडर की ईश्वर में प्रीति थी और गोलानी को गुरुदेव की तरह मानते थे। विर्सन साहब ने इन्हें बादशाह अकबर के प्रसिद्ध मंत्री महाराज टोडर मत अनुमान किया है, परन्तु ऐसा नहीं है। काशी के राजा टोडरमल खन्ना भिन्न व्यक्ति थे और यही गोस्वामीजी के स्नेही थे। काशी के एक सिरे से दूसरे सिरे तक टोडर की ज़मीदारी पाँच महलों में यो। उनके नाम हैं ये-भदैनी, नदेसर, शिवपुर, छीतपुर और लहरतारा । भदैनी, भव काशिराज के पास है, इसी महाझे