पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/४०४

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G प्रथम सोपान, बालकाण्ड । विचार कर के मौका समझ कर जनकजी का चित्त को उढ़ करना 'धृति सवारी- भाव' है। दो०-प्रेम-बिबस परिवार सब, जानि सुलगन नरेस । कुँअरि चढ़ाई पालकिन्ह, सुमिरे सिद्ध गनेस ॥३३॥ सब परिवार प्रेम के अधीन हुा है, राजा ने अच्छो साइत जान कर सिद्धिदायक गणेशजी का स्मरण कर के कन्याओं को पालकी पर चढ़ाया ॥ ३३ ॥ चौ०-बहु बिधि भूप सुता समुझाई । नारि-धरम कुल-रीति सिखाई ॥ दासी दास दिये बहतेरे । सुचि सेवक जे प्रिय सिय केरे ॥१॥ राजा ने बहुत तरह से पुत्रियों को समझाया, स्त्री-धर्म और कुल की रीति सिखाई। बहुत से दास और दासियाँ दी जो सीताजी के प्रिय और पवित्र सेवक हैं ॥१॥ सीय चलत ब्याकुल पुरबासी । होहिं सगुन सुभ मङ्गल-रासी भूसुर सचिव समेत समाजा। सङ्ग चले पहुँचावन राजा ॥२॥ सीताजी के चलते समय नगर निवासी व्याकुल हो गये, अच्छे मङ्गल के राशि सगुन होते हैं । ब्राह्मणऔर मन्त्रिमण्डल के सहित पहुँचाने के लिए राजा जनक साथ चले ॥२॥ समय बिलोकि बाजने बाजे । रथ राज बाजि बरातिन्ह साजे ॥ दसरथ बिन बोलि सब लीन्हे । दान मान परिपूरन कीन्हे ॥३॥ समय देख कर वाजे बजने लगे, रथ, हाथी और घोड़े बरातियों ने सजाये । दशरथजी ने सब ब्राह्मणों को बुलवा लिया, उन्हें दान और सम्मान से सन्तुष्ट किया ॥३॥ चरन-सरोज-धूरि धरि सीसा । मुदित महीपति पाइ असीसा । सुमिरि गजानन कीन्ह पयाना। मङ्गल-मूल सगुन भये नाना ॥४॥ ब्राह्मणों के चरण-कमलों की धूलि सिर पर रख कर और आशीर्वाद पा कर राजा प्रसन्न हुए। गणेशजी का स्मरण कर के यात्रा की. नाना प्रकार मंगल के मूल सगुन हुए ॥ ४ ॥ दो०-सुर प्रसून बरषहिँ हरषि, करहिं अपछरा गान । चले अवधपति अवधपुर, मुदित बजाइ निसान ॥३३॥ देवता प्रसन्न होकर फूल बरसाने हैं और अप्सराएँ गोन करती हैं। अयोध्यानरेश प्रस. प्रतापूर्वक (जनकपुर से) अयोध्यापुरी को डका बजा कर चले ॥ ३३६ ॥ चौ०-प करि बिनय महाजन फेरे। सादर सकल माँगने टेरे ॥ भूषन बसन बाजि गज दीन्हे । प्रेम पोषि ठाढ़े सब कीन्हे ॥१॥ राजा दशरथजी ने विनती कर के प्रतिष्ठितजनों को लौटाया और सम्पूर्ण मगनों को बुलवाया। गहना, कपड़ा, घोड़ा, हाथी दिया और प्रेम से सब को सन्तुष्ट कर के बड़ा किया ॥१॥ ४४