पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/४०८

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । ३०९ दो०- बीच बीच बर बास करि, मग लोगन्ह सुख देत। अवध समीप पुनीत दिन, पहुँची आइ जनेत ॥३४३॥ बीच बीच में सुन्दर टिकान कर के लोगों को सुख देती हुई पवित्र दिन में परात अयोध्यापुरी के समीप आ पहुँची ॥ ३४३ ॥ चौ०-हने निसान पनव बर बाजे । भेरि सङ्घ धुनि हय गय गाजे ॥ झाँझ बीन डिंडिमी सुहाई । सरस-राग बाजहिं सहनाई ॥१॥ डके पर चोट पड़ी; सुन्दर ढोल बजने लगे; धौंसावाले नगाड़े, शह्व-ध्वनि, हाथी और घोड़ों के गर्जन, झाँझ, वीणा, सुहावने डफले तथा रसीले राग में सहनाइयां बजती हैं ॥१॥ पुरजन आवत अनि घराता । मुदित सकल पुलकावलि गाता ॥ निज निज सुन्दर सदन सँवारे । हाट बाट चौहट पुर द्वारे ॥२॥ . पुरजनों ने बरात का आगमन सुना, सब के शरीर में प्रसन्नता से पुलकावली छा गई। अपने अपने घर, बाज़ार, गली, चौराहा, नगर और द्वार सुन्दर सजाये ॥ २ ॥ गली सकल अरगजा सिंचाई। जहँ तहँ चौके चारु पुराई ॥ बना बजार न जाइ बखाना। तोरल केतु पताक बिताना ॥३॥ सम्पूर्ण गलियाँ अगंजा से सिंचाई गई, जहाँ तहाँ सुन्दर चौके पुरवाई गई। बन्दनवार, ध्वजा, पताका और मण्डपों से बाज़ार ऐसा सजाया गया कि खाना नहीं जा सकता ॥३॥ अरगजा-कपूर, केसर और चन्दन आदि से बना सुगन्धित जल । चौक-मङ्गल के अवसरों पर अगनाई या अन्य समतल भूमि पर श्राटा, अबोर आदि की रेखाओं से बना हुआ चौखूटा क्षेत्र जिसमें कई प्रकार के खाने तथा चित्र बनाये रहते हैं । इसी क्षेत्र के ऊपर देव- पूजन आदि मङ्गल कार्य होता है। सफल पूगफल कदलि रसाला । रोपे बकुल कदम्ब तमाला ॥ लगे सुभग तरु परसत धरनी । मनि-मयं आलबाल कल करनी ॥४॥ फल के सहित सुपारी,केला, श्राम, मौलसिरी, कदम और तमाल के पेड़ बनाये। वे लगे हुए सुन्दर वृक्ष धरती को छू रहे हैं, उनके थाले मणियों के अच्छी कारीगरी से बनाये गये हैं॥४॥ दो०-बिबिध भाँति मङ्गल कलस, गृह गृह रचे सँवारि । सुर ब्रह्मादि सिंहाहिँ सब, रघुबर-पुरी निहारि ॥३४॥ घर घर अनेक प्रकार मङ्गल-कलश सजा कर बनाये गये । ब्रह्मा बादि देवता सव रघुनाथजी की नगरी (अयोध्यापुरी) को देख कर सिहाते हैं ॥ ३४४ ॥