पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/४१

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में बिस्लीघाट है। नदेसर भी काशीनरेश के अधिकार में है। शिवपुर पञ्चकोश में है, यहाँ पाँचों पाण्डवों का मन्दिर और द्रौपदीकुण्ड है जिसका जीर्णोद्धार राजा टोडरमल ने कराया था। छोत्पुर भदैनी के पश्चिम भाग में है। लहरतारा बनारस छावनी (सिकरौर स्टेशन) के समीप में है। राजा टोडरमल को द्वन्द्ध के कारण गोसाइयों ने तलवार से काट डाला । टोडर की मृत्यु से गोसाँईजी को बड़ा खेद हुआ। कहा जाता है कि उनके मरने पर गोसाँईजी ने निम्न दोहे को- चार गाँव को ठाकुरो, मन को महा महीप । तुलसी या कलिकाल में, अथये टोदर भूप ॥१॥ तुलसी रामसनेह को, सिर पर भारी भार । टोडर काँधा ना दियो, सब कहि रहे उतार ॥२॥ तुलसी उर थाना विमल, टोड़र गुन-गन वाग। ये दोउ नैनन्ह सौंचिहौं, समुक्षि समुक्षि अनुराग ॥३॥ रामधाम टोड़र गये, तुलसी भये भसोच । जियवो मीत पुनीत बिनु, यही जानि सोच ॥४॥ राजा टोडरमल के दो लड़के थे। एक का श्रानन्दराम और दुसरे का बलिभद्र नाम था। बलिमदः टोडर के सामने ही परलोकवासी हो गया उसके पुत्र का नाम फंघई था । टोडर के मरने पर आनन्दराम और कंधई में जायदाद के लिये झगड़ा हुना, उसमें गोस्वामीजी पंच हुए थे। उन्होंने एक पंचायती फैसला लिखा था, वह ग्यारह पीढ़ी पर्यन्त टोडर के वंशजों के अधीन रहा । ग्यारहवीं पीढ़ी में पृथ्वीपाल सिंह ने उप्लो महाराज काशीनरेश के हवाले कर दिया। वह अवतक उनके यहाँ सुरक्षित है । टोडर के वंशज अबतक अस्लो पर निवास करते हैं। वह पचनामा कुछ नागरी अक्षरों में और कुछ फारसी अक्षरों में लिखा है, परन्तु हम उसका प्रतिलिपि हिन्दी वर्णी मै पाठकों के सामने रखते हैं। पञ्चनामे की प्रतिलिपि। श्रीजानकीवल्लभो विजयते द्विश्शरं नाभिशंधत्ते द्वित्स्थापयति नाश्रितान् । द्विर्ददाति न चार्थिभ्यो रामो द्विनैव भापते ॥३॥ तुलसी जान्यो दशरथहि, धरम न सत्य समान । राम तजे जेहि लागि विनु, राम परिहरे पान ॥२॥ धम्मो जयति नाधर्मस्सत्यं जयति नानृतम् । क्षमा जयति न मोधो विष्णुर्जयति नासुरः ॥३॥ मल्लाहो अकबर । → अनंदराम बिन टोडर बिन देओराय व कन्हई यिन यलिभद्र विन टोडर मजकूर दर हुज़र आमदः करार दादन्द कि दर मवाज़िए मतक्षक कि तफ़सीलि आँ दर हिन्द्वी मजकूर अस्त बिल मुनासफा बतराजीए जानिवैन करार दादेम व यक सद पिंजाह,विधा ज़मीन ज़्यादः किस्मत मुनासिफर खुद दर मौजे भदैनी अनन्दराम मजकूर व कन्हई विन रामभद्र मजकूर तजवीज़ नमूदः बर मानी राजीगश्तः अतराफ सहीह शरई नमूदन्द विनावर आँ मुहर करदः शुद । श्री परमेश्वर संवत १६६६ समए कुमार सुदि वेरसी धार शुभ दीने लिपीतं पत्र अनन्दराम तथा कम्हई